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इन्हें पंन्यास पद बोटाद में गुरुदेव पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के कर-कमलों द्वारा प्रदान किया गया। इन्हें उपाध्याय पदवी राजस्थानदीपक आचार्य श्रीमद् विजय सुशीलसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा नाडोल में प्रदान की गई। इनके साथ ही मुनिराज श्री विनोदविजयजी को भी उपाध्याय पद से अलंकृत किया गया।
... ये मुनिराज ज्ञान-ध्यान-तप की आराधना में सदा लीन रहते थे। इन्होंने ४५. वर्धमान तप, वर्षीतप, नवपद अोली तप आदि आनन्दपूर्वक सम्पन्न किये। .
असाता वेदनीय कर्म के कारण ये मुनि भगवन्त अनेक वर्षों से रुग्ण रहे, परन्तु अपनी शारीरिक वेदना को समभाव ने सहन करते हुए संयम-पालन में अप्रमत्त रहे । सिरोही जैन संघ ने इन महाराज श्री की पूर्ण रूप से सेवा-भक्ति की। श्री जैनसंघ को कोटिशः धन्यवाद ।
वि. सं. २०४३, पौष वद १०, भगवान् पार्श्वनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक दिन को ये महात्मा कालधर्म को प्राप्त हुए। अरिहन्त प्रभु का जाप करते हुए, समभाव में रमण करते हुए इन्होंने पार्थिव शरीर छोड़ा। इनकी
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