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है पू. उपाध्याय श्री १ चन्दनविजयजी गणिवर्य
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संसार के भोग रोग हैं, शरीर नाशवान् है, आत्मा अमर है, इस बात की प्रतीति जिस भव्यात्मा को हो जाती है, वह संसार की तृष्णा में नहीं फँसता ।
ऐसा पुण्य-प्रसंग आया श्री चिमनभाई के जीवन में कि प. पू. शासनसम्राट् के पट्टधर साहित्यसम्राट् प. पू. श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म. सा. छानी पधारे । चिमनभाई ने उनके उपदेश से प्रभावित होकर वि. सं. १९९७ में भागवती दीक्षा ली। उनके साथ मुनि श्री विबुधविजयजी ने भी दीक्षा ली। श्री चिमनभाई का मुनिनाम चन्दनविजय रखा गया। ये मुनिराज प. पू. आचार्य श्रीमद् विजय लावण्यसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य हुए।
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तेरह :