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होता है तो तत्काल 'न खद्योतो न चन्द्रमाः' अर्थात् ये तेजी रहित बन जाते हैं । वन में मदोन्मत्त हाथी आदि भी तभी तक फिरते हैं और गर्जना करते हैं जब तक वनराज केसरीसिंह की गर्जना नहीं सुनते । गर्जना सुनने के साथ ही सब वहाँ से पलायन कर जाते हैं । अब मैं केसरीसिंह जैसा श्रा रहा हूँ। तुम मदोन्मत्त हाथी जैसे हो तो भी भाग जानोगे । नहीं तो तुम्हारी खबर मैं लूंगा और वाद में पराजित कर दूंगा ।"
इस तरह श्रीइन्द्रभूति की यह विचारणा उनके पाण्डित्य की प्रभारी है। उन्हें इतनी खुमारी है कि बहुत समय से मेरे सामने शास्त्रार्थ कर सके ऐसा कोई पण्डित मिला नहीं है । आज मेरा भी सद्भाग्य है कि सर्वज्ञ तरीके ख्याति धराने वाला व्यक्ति श्राज मेरे सम्मुख समीप आया है । जैसे भूखे को भोजन मिले वैसे मुझे भी यह वादी मिलने से प्रतीव आनंद हो रहा है। अब प्राज उससे वाद करके बहुत समय को मेरी जीभ की खरज को दूर करूंगा । कारण कि मैं सर्व शास्त्रों में पारंगत हूँ । लक्षणशास्त्र में तो मेरा दक्षपना सर्वोत्तम है, साहित्य में मेरी मति अस्खलित है और तर्कशास्त्र में तो मेरी कर्कशता - निपुणता अत्यन्त ही उत्तम है । विश्व में ऐसा
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