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________________ देड़का सर्प को लात- चपेटा मारने के लिये उद्यमवंत बने, मूषक - उन्दर अपने दाँतों से बिल्ली की दाढ़ी को पाड़ने के लिये उत्साहित बने, वृषभ अपने सींगों से ऐरावत हाथी पर शीघ्र प्रहार करने की चेष्टा करे, हाथी अपने दो दन्तुशल द्वारा वेगपूर्वक पर्वत को भेदने का प्रयत्न करे और शशक केसरीसिंह के स्कन्ध की केसरा को खींचने की तीव्र इच्छा करे, वैसे ही इसने किया है । सभी जैसे अपने विनाश को निमंत्रण देते हैं, वैसे ही इसने भी किया है । मेरे देखते हुए भी उन लोगों के आगे अपना सर्वज्ञपना प्रसिद्ध करता है। ग्रहो ! के सिर पर रहे हुए मरिण को लेने के लिये अपना हाथ पसारने जैसा काम किया है, वायु के सामने खड़े रहकर अग्नि को सुलगाने जैसा काम किया है तथा सुख की इच्छा से अपने शरीर पर दुःख उत्पन्न करने वाले कवच को आलिंगन करने जैसा काम किया है । इससे क्या ? अभी मैं शीघ्र उसके पास जाकर वाद में उसको निरुत्तर कर दूंगा ! उसने तो शेषनाग " प्रकाश में जब तक सूर्य उदयवंत नहीं होता है तभी तक खद्योत - जुगनू चलकाट करता है और चन्द्रमा भी प्रकाश फैलाता है; लेकिन जब सूर्य प्रकाश में उदित ( २७ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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