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________________ कारण कि शरीर में रहा हुआ छोटा भी शल्य प्राणघातक होता है, नौका में पड़ा हुमा छोटा कारणा-छिद्र भी नौका. वहाण को डुबा देता है तथा मजबूत किले की एक ही इंट खसेड़ने से सारा किला गिर सकता है। इसलिये हे अग्निभूति ! विश्व के वादियों को जीत कर प्राप्त की हुई कीत्ति का संरक्षण करने के लिये आज तो इस वादी को जीतने के लिये मेरा जाना ही उचित है। कुछ भी हो, मुझे जाना ही पड़ेगा।' बस, अब तो श्रीइन्द्र भूति जाने के लिये तैयार हो गये। उन्होंने अपने ललाट . पर बारह तिलक किये, देह पर सुन्दर पोताम्बर तथा स्वर्ण की जनेऊ धारण की। सबसे आगे श्रीइन्द्रभूति चल रहे हैं, उनके पीछे उनके पांच सौ छात्र-विद्यार्थी भी चल रहे हैं। उनमें से किसी के हाथ में कमण्डल है तो किसी के हाथ में दर्भ (दूर्वाधास) इत्यादि है। ये सभी विद्यार्थी अपने विद्यागुरु श्रीइन्द्रभूति की विविध प्रकार की विरुदावली बोलते हुए चल रहे हैं। कारण कि इन विद्यार्थियों के तो वे पूज्य गुरु हैं और आराध्य भी हैं। इसलिये चलते-चलते वे सानंद बोल रहे हैं कि (१) 'हे सरस्वतीकण्ठाभरण !' अर्थात् आप सरस्वतीदेवी के कण्ठ के अलंकार समान हो। ( २२ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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