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द्रविड़ देश के पण्डित विचक्षण होते हुए भी लज्जा से दुःखी हो गये हैं ।'
पता नहीं
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'मेरी महान् विद्वत्ता के आगे सर्व देशों के पण्डित परास्त हो गये हैं, तो भी मेरे आगे यह कौन वादी है जो 'सर्वज्ञ' रूप में अभिमान को उद्वहन कर रहा है ? सारे तिलों का तेल निकालते यह एक तिल कहाँ बाकी रह गया ? सर्व वादियों को मैंने जीत लिया और जगत् में विजय पताका लहरा दी एवं वादियों का दुष्काल भी कर दिया तब फिर यह वादी किस स्थल में छिपा रह गया ? इस तरह विचारते हुए श्रीइन्द्रभूति अपने बन्धु अग्निभूति को कहने लगा कि ' है अग्निभूति ! जैसे मूंग पकाते हुए कोई कोरडुं (मूंग का दाना ) रह जाय, वैसे सर्व वादियों को जीतने पर भी कोरडुं की माफिक यह वादी रह गया लगता है । कुछ भी हो, अब तो मुझे उसे वाद में परास्त करने के लिये और विजय प्राप्त करने के लिये अवश्य जाना ही पड़ेगा ।'
सर्वज्ञ का पराभव करने हेतु जाने की उत्सुकता वाले वडील बन्धु श्रीइन्द्रभूति को श्रीश्रग्निभूति ने कहा कि'हे सुज्ञ बन्धुवर्य ! वहाँ आपके जाने की क्या आवश्यकता है ? कीड़े के तुल्य इस वादी को जीतने के लिये आपको
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