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आडम्बर करने वाले इस महाधूर्त पाखंडी को सहन नहीं
कर सकता । '
वृक्ष क्या है ?
'मैंने महापण्डितों की सभा में बड़े-बड़े वादियों की वाद-विवाद में बोलती बन्द की है, ऐसा मेरे ही समीप अपने घर में ही शूरवीर बना हुआ यह सर्वज्ञ कौन है ? यह मेरे आगे क्या है ? जिस अग्नि ने महापर्वतों को भी जला दिया है, उसके आगे जिस वायु-पवन ने मदोन्मत्त महाहाथियों को भी उखाड़ कर दूर फेंक दिया है, उसके लिये रुई के एक फाहे को उड़ाना कौन सी बड़ी बात है ? उसने विश्व में भले ही अपना प्रभुत्व फैला दिया, किन्तु मैं भी कम नहीं हूँ, मैंने भी बड़े-बड़े दिग्गज साक्षरों को शास्त्रार्थ में उखाड़ कर फेंक दिया है । तो इस अकिंचन की तो क्या बात जो तूल के समान है । अहो ! वादियों को जीतने के लिये श्रातुर ऐसे मेरे लिये तो इस विश्व में वादियों का महादुष्काल पड़ गया है । कारण कि गौड़ देश में जन्मे हुए पण्डित तो मेरे भय से डर कर दूर देश में चले गये हैं, गुर्जर (गुजरात) देश के पण्डित जर्जरीभूत होकर त्रास पा गये हैं, मालवा देश के
पण्डित मर गये हैं, तिलंगदेश के पण्डित दुर्बल हो गये हैं, लाटदेश के पण्डित मुझसे डर कर कहीं भाग गये हैं तथा
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