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हैं कि प्रामवृक्ष के सुगन्धित महोर पर भ्रमर गुंजार करते हुए एकत्र होते हैं, किन्तु नीम के वृक्ष पर तो व्याकुल बना हुआ कौओं का टोला एकत्र होता है। इधर भी ऐसा ही हो रहा है। भले ! ऐसा हो, इससे तुम्हारा क्या बिगड़ता है ? ___अपने सर्वज्ञपने के अभिमान में रहे हुए श्री इन्द्रभूति कहते हैं-चाहे कितना भी कुछ हो, तो भी मैं इस मिथ्याभिमानी महाधूर्त के सर्वज्ञपने के आटोप-आडम्बर को किसी भी रीति से सहन नहीं कर सकता ? कारण कि
व्योम्नि सूर्यद्वयं किं स्याद्, गुहायां केसरिद्वयम् । . प्रत्याकारे च खड्गौ द्वौ, किं सर्वज्ञवहं स च ॥
क्या आकाश में दो सूर्य हो सकते हैं ? क्या एक गुफा में दो सिंह रह सकते हैं ? क्या एक म्यान में दो खड्ग (तलवार) रह सकती हैं ? जो ये सभी नहीं हो सकते तो एक ही स्थान में मैं और वह, इस प्रकार दो सर्वज्ञ किस तरह से हो सकते हैं ? अर्थात् आकाश में दो सूर्य, गुफा में दो केसरीसिंह तथा म्यान में दो खड्ग एक साथ कदापि नहीं रह सकते, उसी प्रकार यहाँ भी दो सर्वज्ञ एक साथ नहीं रह सकते। मैं भी सर्वज्ञ और वह भी सर्वज्ञ, ऐसा नहीं हो सकता।