SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिलकर चार हजार चार सौ (४४००) शिष्य श्री सोमिल विप्र के वहाँ पर यज्ञ-मण्डप में आये हुए थे । इनके अलावा भी अनेक ब्राह्मण यज्ञ-मण्डप में एकत्र हुए थे। इनमें उपाध्याय-शंकर, ईश्वर, शिवजी नाम के थे । जानि-गंगाधर, महीधर, भूधर, लक्ष्मीधर नाम के थे । पिण्डया-विष्णु, मुकुन्द, गोविन्द, पुरुषोत्तम, नारायण नाम के थे। दुवे-श्रीपति, उमापति, विद्यापति, गणपति, जयदेव नाम के थे। व्यास-महादेव, शिवदेव, मूलदेव, सुखदेव, गङ्गापति, गौरीपति नाम के थे। त्रिवाडीश्रीकण्ठ, नीलकण्ठ, हरिहर नाम के थे । रामजी-बालकृष्ण, यदुराम, राम, रामाचार्य नाम के थे। राउल-मधुसूदन, नरसिंह, कमलाकर, सोमेश्वर, हरिशंकर, त्रिकम नाम के थे। जोसी-पूनो, रामजी, शिवराम, देवराम, गोविन्दराम, रघुराम तथा उदिराम इत्यादि भी थे । ये सभी ब्राह्मण यज्ञकर्म के लिये एकत्र हुए थे । इधर यज्ञ-मण्डप में यज्ञ चल रहा है और वहाँ पर अपापापुरी के महसेन वन में देवों द्वारा रचित दिव्य समवसरण में सर्वज्ञ विभु श्रमण भगवान् श्री महावीर परमात्मा रत्नजड़ित दिव्य सिंहासन पर विराजित सुन्दर शोभ रहे हैं। उनको वन्दन करने के लिये आते हुए देवों ( १३ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy