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पिता का नाम वसुभूति ब्राह्मण, माता का नाम पृथ्वीदेवी तथा दो बन्धुओं का नाम अग्निभूति एवं वायुभूति था । गौतम गोत्र, वज्र ऋषभनाराच संघयण तथा समचतुरस्र संस्थान था। इनका ज्ञान न्याय-व्याकरण-काव्य-अलंकार-पुराण-उपनिषद्-वेद इत्यादि स्वधर्मशास्त्र का था। ये चौदह विद्या के पारंगत थे और अपने ५०० छात्रों को पढ़ाते थे तथा यज्ञादिक की क्रिया आदि भी करवाते थे। 'सर्वज्ञोऽहम्' का अभिमानपूर्वक दावा करते थे। इतना होने पर भी अपने अन्तःकरण में वेदपदों और उनके अर्थ के सम्बन्ध में परस्पर प्राते हुए विरोध से 'जीव-प्रात्मा है कि नहीं ?' उनका यह संदेह-संशय अवश्य था ।
(२) श्रीअग्निभूति-ये श्री इन्द्रभूति विप्र के लघु बन्धु थे तथा अपने ५०० छात्रों के अध्यापक थे। इनका जन्म वृषभ राशि और कृत्तिका नक्षत्र में हुआ था। इनका शेष जीवन परिचय प्रथम गणधर श्रीइन्द्रभूति की माफिक जानना। इनको भी 'कर्म है कि नहीं?' इस विषय का संदेह-संशय अपने अन्तःकरण में था।
. (३) श्रीवायुभूति-ये श्री इन्द्रभूति तथा श्री अग्निभूति के लघु बन्धु थे तथा अपने ५०० छात्रों के अध्यापक थे। इनका जन्म तुला राशि और स्वाति नक्षत्र में हुआ