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मध्यखण्ड के विभाग में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर भगवन्त हुए हैं । प्रथम श्री ऋषभदेव तीर्थंकर भगवन्त से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर भगवन्त श्री महावीर स्वामी परमात्मा ई. सन् पूर्व ५६६ में हुए ।
आज से श्री वीर सं. २५१३ वर्ष तथा विक्रम सं. २०४३ वर्ष पूर्व इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र, दक्षिणार्ध भरत और मध्यखण्ड में स्थित भारत देश के क्षत्रियकुण्डग्रामनगर में क्षत्रिय श्री सिद्धार्थ महाराजा की राणी श्री त्रिशलादेवी क्षत्रियाणी की कुक्षि से महावीर चैत्र सुदी १३ की मध्य रात्रि में जन्मे और ३० वर्ष तक संसार में रहे। उन्होंने ३१ वें वर्ष के मागसर (कार्तिक) वद दशमी के दिन दीक्षा ली । उसी दिन चतुर्थ मनः पर्यवज्ञान प्राप्त किया । संयम में साढ़े बारह वर्ष पर्यन्त घोर तपस्या करते हुए उन्होंने दैविक तथा मनुष्य तिर्यंचादि के भयंकर उपसर्ग और शीत - तापादिक के प्रति घोर परीषह समभाव से सहन किये ।
तपश्चर्या में एक छह मासी तप, एक पाँच दिन न्यून छह मासी तप, नौ चोमासी तप, दो तीन मासी तप, दो ढाई मासी तप, छह दो मासी तप, दो डेढ़ मासी तप, बारह मासक्षपरण, बहत्तर पक्षक्षपरण, चार दिन की एक
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