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________________ श्रीमद्विजयने मिसूरीश्वर स्तुत्यष्टक कर्त्ता - पंन्यास श्रीसुशीलविजयजी गरिणवर्य. ( वर्त्तमान - पू. प्रा. श्रीविजय सुशीलसूरीश्वरजी म. सा. ) (मन्दाक्रान्ता छन्दमां ) ( बोधागाधं सुपदपदवी नीरपुराभिरामं - ए रागमां ) जेणे जन्मी लघुवयथकी संयम श्रेष्ठ पाल्यु, ने शाताथी जीवन सघलु धर्मकार्ये ज गाल्युं । साध्या बन्न े विमल दिवसो जन्म ने मृत्यु केरा, वन्दु तेवा जगगुरुवरा नेमिसूरीश हीरा ॥ १ ॥ जेनी कीति प्रवर प्रसरी विश्वमांहे अनेरी, गावे घ्यावे जगत जनता पूज्य भावे भलेरी | जोतां जेने परम पुरुषो पूर्वना याद आवे ने आनंदे भविजन सदा भव्य उल्लास पावे ।। २ ।। " मोटा ज्ञानी जगत भरना शास्त्रनो पार पाम्या ने न्यायोना नयमितितरणा सार ग्रन्थो बनाव्या । वाणी जेनी ग्रमृत सम ने गर्जना सिंह जेवी, ने तेजस्वी विमल प्रतिभा सूर्यना तेज जेवी ।। ३ ।। जे बिम्बो बहुजिनतरणा भव्य पासे भराव्यां, ने धर्मोना बहुविषयना श्रेष्ठ शास्त्रो लखाव्यां । नाना ग्रन्थो अभिनव ने प्राच्य सारा छपाव्यां, ने तीर्थोना अनुपम महा कैक संघो कढाव्यां || ४ || ( १३५ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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