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________________ 1. जीर्णोद्धारो जिनभवननां नव्य चैत्यो घणेरा तीर्थोद्धारो जस सुवचने कैंक दीपे अनेरा । आत्मोद्धारो भविक जनना खूब कीधा उमंगे, भूपोद्धारो जगत भरमां कीधला कैक रंगे ।। ५ । सौराष्ट्र श्री मरुधर अने मेदपाट प्रदेशे, देशोदेशे सतत विचरी गुजरात प्रदेशे । सारां सारां अनुपम घरणां धर्मना कार्य कीधां, सौए जेनां वचन कुसुमो शीघ्र भीली जलीधां ।। ६ ।। जेरणा यत्ने थइ सफलता साधु-संमेलने जे, तेथी लाघ्यो सुयश विमलो विश्वमां आत्मतेजे । आचार्यादि प्रवर पदथी भूषिता कैंक कीधा, रंगे जेणे जगत भरने योग ने क्षेम दीधा ॥ ७ ॥ दीवालीनी विमल कुखने जेह दीपावनारा, लक्ष्मीचन्द्र - प्रवर कुलने नित्य शोभावनारा | सौराष्ट्र श्री - मधुपुर तरणी कीर्ति विस्तारनारा, वन्दु छ ते विमल गुरणना धाम ने आपनारा ।। ८ ।। ( हरिगीत छन्दमां ) तपगच्छनायक जगगुरु श्रीनेमिसूरीश्वर तरणा, पट्ट गगने भानु सम लावण्यसूरिरायना । शिष्य दक्ष मुनीश केरा सुशील शिष्ये ए रच्यु, निज शिष्य श्रीविनोदनी विनती थकी जे उर जच्यु ।। ६ ।। O ( १३६ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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