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म एकादश गणधर श्रीप्रभासजी का देववन्दन
* चैत्यवन्दन * एकादशम प्रभासनाम, संशय मन धारे ; भव निर्माण लहे नहि, जीव इणे संसारे ॥१॥ अग्निहोत्र नित्ये करे, अजरामर पामे ; वेदारथ इम दाखवे, तस संशय वामे ॥ २॥ वीर चरणनो रागियो, ए तेह थयो तत्काल ; ज्ञानविमल जिन चरण तरणी, प्रारण वहे निज भाल ।३।
ॐ स्तुति * एकादश प्रभास, पूरतो विश्व प्राश , सुरनर जस वास, वीरचरणे निवास ; जग सुजस सुवास, विस्तों ज्युं बरास , ज्ञानविमल निवास, हुं जपुं नाम तास ॥ १ ॥
(शेष तीन स्तुतियाँ प्रथम गणधर के देववन्दन की भाँति कहनी)।
र स्तवन (कनक कमल पगलां ठवे-ए देशी में) गणधर जे अगियारमो ए, ए आशा पूरण प्रभास ; नमो भवि भावशू ए, कोडिन गोत्र छे जेहनु ए,
राजगृहे जस वास-नमो भवि भावशू ए॥१॥
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