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________________ * स्तवन ( आदर जीव क्षमागुण आदर-ए देशी में ) मेतारज प्रारज गरणी दशमो , सुप्रभाते नित्य नमीये रे; मतुंगिय सन्निवेशे , वत्सभूमि तेहने ध्याने रमीये रे, गणधर गुणवंताने वंदो ॥१॥ (ए प्रांकरणी) वरुणादेवी जेहने छे माता , दत्त नामक जस कहिये रे; कोडिन गोत्र नक्षत्र जन्मनु , अश्विनी नामे लहिये रे , गणधर गुणवंताने वंदो ॥ २ ॥ वरस छत्रीस रह्या घर वासे , छद्मस्थ दस वरिसाजी; सोल वरस केवलि पर्याये , त्रणसें मुनिवर शिष्याजी , गणधर गुरगवंताने वंदो ॥३॥ बासठ वरस सवि पाउखु पालि, त्रिपदीना विस्तारीजी; कनक कान्ति सवि लब्धिसिद्धिना, ज्ञानादिक गुणधारीजी, __गणधर गुरगवंताने वंदो ॥ ४ ॥ मास संलेषण राजगृहीमां, वीर थके शिव लहियाजी; ज्ञानविमल चरणादिकना गुण, किरणही न जाये कहियाजी, गणधर गुणवंताने वंदो ॥ ५॥ ( १२४ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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