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(१०) ॐ दशम गणधर श्रीमेतार्यजी
का देववन्दन 5
* चैत्यवंदन * परभवनो संदेह छ, मातार्य चित्ते ; भाखे प्रभु तव तेहने , दाखी बहु जुगते ॥१॥ विज्ञान घन पद तरणो , ए अर्थ विचारे ; परलोके गमनागमे , मन निश्चय धारे ॥ २ ॥ पूर्वारथ बहुपरे कहीये , छेद्यो संशय तास ; ज्ञानविमल प्रभु वीरने , चरणे थयो ते दास ॥ ३ ॥
* स्तुति
( मालिनीवृत्त ) दशम गणधर वखाणो , आर्य मेतार्य जाणो , लह्यो शुभ गुरण ठाणो , वीर सेवा मण्डारणो ; अछे अोहिज टारगो , कर्म ने वाज पारणो ,
ए परम दुजाणो , ज्ञान गुण चित्त प्रारणो ॥१॥ __(शेष तीन स्तुतियाँ प्रथम गणधर के देववन्दन की भाँति कहनी )।
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