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________________ ( शेष तीन स्तुतियाँ प्रथम गणधर के देववन्दन की भाँति कहनी ) । * स्तवन ( नमो रे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर - ए देशी में ) नवमो चलभ्रात कहीजे, गरगधर गिरुम्रो जागो रे ; कोशला नयरीए उपनो, हारीय गोत्र वसारणो रे, भाव धरीने भवियरण वंदो ॥ १ ॥ नंदा नामे जेहनी माता, वसुदेव जनक कहीजे रे ; मृगशिर नक्षत्र जन्म तर जस, कंचन कान्ति भरणीजे रे, भाव धरीने भवियरण वंदो ।। २ ।। वरस छेंतालीश घरमां वसीया, रसीया व्रते वरस बार रे; चउद वरस केवल पर्याय तीन सया परिवार रे, भाव धरीने भवियरण वंदो || ३ || बहोत्तेर वरस उ परिमाणो, लब्धि सिद्धि सुविलासी रे; सम्पूरण श्रुतधर गुरणवन्ता, वीर चरण नीतु वासी रे, भाव धरीने भवियरण वंदो ॥ ४ ॥ वीर छते राजगृही नगरे, मास भक्त शिव पाम्या रे ; ज्ञानविमल थुरणी सवि सुरवर, आवी चरणे नाम्या रे भाव धरीने भवियरण वंदो ।। ५ ।। , ( १२२ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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