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________________ कंचनवन मास अरणसणी - भवि वंदो रे , वीर छते गुणगेह - सदा पाणंदो रे; राजगृहे शिव पामीया - भवि वंदो रे , ज्ञान गुणे नवमेह - सदा पाणंदो रे ॥५॥ (६) 9 नवम गणधर श्रीअचलाता का देववन्दन म * चैत्यवन्दन र अचलभ्रातने मन वस्यो , संशय एक खोटो ; पुण्य-पाप नवि देखीए , ए अचरिज मोटो ॥१॥ पण प्रत्यक्षे देखिये , सुख - दुःख घणेरां ; बीजानी परे दाखियां , वेदपदे बहोत्तरां ॥२॥ समजावीने शिष्य को ये , वीरे प्राणी नेह ; ज्ञानविमल पाम्या पछी, गुण प्रगटयो तस देह ॥ ३ ॥ 2 स्तुति * ( मालिनीवृत्त ) नवमो प्रचलभ्रात , विश्वमा जे विख्यात , सुत नंदा कुंदादावत मात धर्म ; कृत संशय पात , संयमे पारिजात , दलित दुरित व्रात , ध्यान श्री सुख शात ॥१॥ ( १२१ ) गण-९
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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