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________________ न० ॥ ४ ॥ जीहो मासतरणी संलेखरणा , जोहो आराधी अतिसार ; जोहो वीर छते शिव पामीया , जोहो उट्ठसया परिवार, भविकजन० ॥ ४॥ जीहो वशिष्ट गोत्र सोहामरण, जोहो नाम थकी सुखथाय' ; जोहो ज्ञानविमल गणधर तरणा , जीहो वाधे सुजस सवाय, भविकजन० ॥ ५॥ ॐ सप्तम गणधर श्रीमौर्यपुत्र का देववन्दन ___* चैत्यवन्दन सातमो मौर्यपुत्र जे , कहे देवन दीसे ; वेद पदे जे भाखिया, तीहां मन नवि हीसे ॥१॥ यज्ञ करतो लहे सर्ग , ए वेदनी वाणी ; लोकपाल इन्द्रादिक , सत्ता किम जारणी ॥ २ ॥ इम सन्देह निराकरी ए , वीर वयणथी तेह ; ज्ञानविमल जिनने कहे , हुं तुम पगनी खेह ॥ ३ ॥ ( ११७ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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