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________________ उदय अधिक कंचन वने रे लाल , शत शाखा विस्तार सुखकारी रे ; नाम थकी नवनिधि लहे रे लाल , ज्ञानविमल गणधार सुखकारी रे, सोहम० ॥ ५ ॥ ॐ षष्ठ गणधर श्री मण्डितजी के देववन्दन म र चैत्यवन्दन छट्ठो मण्डित बंभयो , बन्ध मोक्ष न माने ; व्यापक विगुरण जे प्रातमा , ते किम रहे छाने ॥१॥ परण सावरण थकी न होय , केवल चिद्रूप ; तेह निवारण थई , होये ज्ञान सरूप ॥२॥ तरणि किरण जिम वादले ए , होय निस्तेज सतेज ; ज्ञान गुण संशय हरी , वीर चरणे करे हेज ॥ ३ ॥ के स्तुति के मरिण मण्डित वारू, जेह छट्ठो करारू, भवजलनिधि तारू, दिसतो जे विदारू ; सकल लब्धि धारू, कामगद तीव्र दारू ; दुश्मन मन वारू, तेहने ध्यान सारू ॥१॥ ( ११५ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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