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ॐ पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामीजी
का देववन्दन ॥
_* चैत्यवन्दन , सोहमस्वामीने मने , छे संशय एहवो ; जे ईहां होय जेहवो , परभव ते तेहवो ॥ १ ॥ शाली थकी शाली नीपजे , पण भिन्न न थाय ; सुरणी एहवो निश्चय नथी , इम कहे जिनराय ॥ २ ॥ गोमयथी विछी होये ए , एम विसदृश पण होय; ज्ञानविमल मति शुं करो, वेदारथ शुद्ध जोय ॥ ३ ॥
* स्तुति
( मालिनीवृत्त ) गरणधर अभिराम , सोहमस्वामि नाम ; जित दुर्जय काम , विश्वमा वृद्धिमाम ; दुप्प सह गरिण जाम , तिहां लगे पट्ट ठाम ; बहु दौलत दाम , ज्ञान (विज्ञान) विमलधाम ॥१॥ ___ शेष तीन स्तुतियाँ प्रथम गणधर के देववन्दन की भांति कहनी)।
गण-८
( ११३ )