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________________ (शेष तीन स्तुतियाँ प्रथम गणधर के देववंदन की भाँति कहनी।) * स्त वन है (महाविदेह क्षेत्र सोहामणए देशी में) श्रीजो गणपति गाइए , वसुभूति-पृथिवी नंद लाल रे ; स्वाति नक्षत्रे जाइयो , गौतमगोत्रे अमंद लाल रे ॥१॥ मगधदेश गाम गोबरे , सगा सहोदर तीन लाल रे ; वरस बेंतालीश घरे वस्या , पछे जिनचरणे लीन लाल रे ॥२॥ छद्मस्थ दश वरसनी , केवली वरस अढार लाल रे ; कंचन वर्ण सवि आउखु , सित्तेर वरस ऊदार लाल रे ॥३॥ राजगृहीए शिव पामीया , मास भला सुखकार लाल रे; पांचसे परिकर साधुनो , सवि श्रुतनो भण्डार लाल रे ॥४ ॥ वीर छते थया अरणसरणी , लब्धि सिद्धि दातार लाल रे; ज्ञानविमल गुरण प्रागरु , वायुभूति अरणगार लाल रे ॥५ ॥ ( ११० )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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