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वीर थकां शिव पामीया , राजगृही सुखकार, ललना ; कंचन कान्ति झलहले , ज्ञानविमल गुरणधार, ललना०
म तृतीय गणधर श्रीवायुभूतिजी
का देववन्दन है
___ चैत्यवंदन * वायुभूति त्रीजो कह्यो , तस संशय एह ; जीव शरीर बेहु एक छे , पण भिन्न न देह ॥ १ ॥ ब्रह्मज्ञान तपे करी , ए आतम लहिए ; कर्म शरीर थी वेगलो , ए वेद सहिए ॥२॥ ज्ञानविमल गुण घन धरणीए , जड़मां केम होय एक ; वीर वयरगथी ते लह्यो , प्राणी हृदय विवेक ॥ ३ ॥
___* स्तुति र वायुभूति वली भाई , जेह त्रीजो सहाई ; जेणे त्रिपदी पाई , जीत भंभा बजाई ; जिनपद अनुयाई , विश्वमां कीति गाई ; ज्ञान विमल भलाई , जेहने नाम पाई ॥१॥
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