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+ ११ गणधरों के देववन्दन ॥
कर्ता-पूज्याचार्य श्रीज्ञानविमलसूरि म.
ॐ प्रथम गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम
स्वामीजी का चैत्यवन्दन ॥
बिरुदधरी सर्वजनुं, जिन पासे आवे ; मधुर वचने वीरजी, गौतम बोलावे ॥१॥
पंचभूतमांहे थकी, जे ए उपजे विरणसे ; वेद अर्थ विपरीतथी , कहो केम भवतरशे ॥ २ ॥
दान दया दम त्रिहुंपदे ए , जाणे तेहज जीव ; ज्ञान विमल घन पातमा , सुख चेतन सदैव ॥३॥
फिर जं किंचि, नमुत्थुणं, अरिहंत चेइमाणं, अन्नत्थ० बोल के एक नवकार का काउस्सग्ग करना। नमो अरिहंताणं बोल के फिर 'नमोर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कह के निम्नोक्त चार स्तुति कहना।
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