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ॐ प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामीजी
की स्तुति के गुरु गणपति गाउं, गौतम ध्यान ध्याउं; सवि सुकृत सबाहु , विश्वमां पूज्य थाऊं ; जग जीत बजाऊं, कर्मने पार जाऊं ; नव निधि ऋद्धि पाऊं, शुद्ध समकित ठाऊं ॥ १ ॥ सवि जिनवर केरा , साधुमाहे वडेरा ; दुग वन अधिकेरा, चउद सय सुभलेरा ; दल्या दुरित अंधेरा , वंदीए ते सवेरा ; गणधर गुण घेरा , (नाम) नाथ छे तेह मेरा ॥२॥ सवि संशय कापे , जैन चरित्र छापे ; तव त्रिपदी पापे , शिष्य सौभाग्य व्यापे ; गणधर पद थापे, द्वादशांगी समापे ; भवदुःख न संतापे, दास ने इष्ट आपे ॥ ३ ॥ करे जिनवर सेवा , जेह इन्द्रादि देवा ; समकित गुण सेवा , प्रापता नित्य मेवा ; भवजल निधि तरेवा , नौ समी तीर्थ सेवा ; ज्ञानविमल लहेवा , लील लच्छी वरेवा ॥ ४ ॥
यहाँ नमुत्थुणं० जावंति चेइग्राइं० खमासमण देकर जावंत के वि साहू० बोल के निम्नोक्त स्तवन कहना
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