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सकल कर्मों का क्षय करके निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। मोक्ष में उनकी अाज भी सादि अनंत स्थिति प्रवर्त्त रही है और भविष्य में भी
सर्वदा ऐसी रहेगी। * संसार में श्री इन्द्रभूति, श्री अग्निभूति तथा श्री वायुभूति इन तीनों बन्धुओं के पिता एवं माता एक होने से ये सगे सहोदर होते हैं तथा दीक्षा में सर्वज्ञ विभु श्री महावीर परमात्मा के शिष्य होने से ये तीनों गुरुबन्धु (गुरुभाई) होते हैं।
म चौथे गणधर श्री व्यक्त के १. नाम : श्री व्यक्त । २. पिताश्री : श्री धनमित्र । ३. मातुश्री : वारुणी देवी । ४. जाति : विप्र (ब्राह्मण) । ५. गोत्र : भारद्वाज गोत्र । ६. जन्म-भूमि : कोल्लाक सन्निवेश गाँव । ७. जन्म-राशि : मकर राशि ।
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