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दिन श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के तृतीय-तीसरे शिष्य बने
और प्रभु के पास 'उवन्नेइ वाविगमेइ वा-धुवेइ वा रूप त्रिपदी'
सुन कर तीसरे गणधर हुए ।) २२. दीक्षा गुरु : सर्वज्ञ विभु श्रमण भगवान महावीर
परमात्मा । २३. दीक्षा के दिन : श्री इन्द्रभूति तथा श्री अग्निभूति
गुरुबन्धु आदि १० हुए । २४. दीक्षा के दिन : सहदीक्षित ५०० शिष्य ।
शिष्य-परिवार २५. दीक्षा पर्याय : २८ वर्ष तक ।
(काल) २६. छद्मस्थ पर्याय : १० वर्ष तक । २७. शास्त्र-रचना : सर्वज्ञ विभु श्री महावीर परमात्मा के
पास से त्रिपदी सुन कर जिन्होंने अन्तर्मुहूर्त में द्वादशाङ्गी (आचारांग आदि बारह आगम सूत्रों) की सम्पूर्ण
रचना बीजबुद्धि द्वारा की। २८. गुण-सम्पदा : सुसंयम, ज्ञान, ध्यान, तप, विनय, गण-५
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