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________________ १३. संस्थान : समचतुरस्र संस्थान । १४. व्यवसाय : अध्यापन कार्य एवं अनुष्ठान क्रिया । १५. ज्ञान : गृहस्थावस्था में चौदह विद्या के पारगामी तथा दीक्षावस्था में सम्यग्ज्ञानादि चार ज्ञान के बाद पंचम केवलज्ञान । १६. ज्ञान का : गृहस्थावस्था में 'सर्वज्ञोऽहम्' अर्थात् अभिमान 'मैं सर्वज्ञ हूँ ' ऐसा अभिमान था। १७. संशय : 'यह शरीर ही आत्मा है कि इससे भिन्न प्रात्मा है ?' यह संशय था । १८. शिष्यगण : ५०० । १६. गृहस्थावस्था : ४२ वर्ष तक संसार में अर्थात् गृहस्थावस्था में रहे। २०. दीक्षा : ४३ वें वर्ष में जैनधर्म की पारमेश्वरी प्रव्रज्या (दीक्षा) अपने ५०० शिष्यों के साथ अपापापुरी के महसेन वन में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा से ग्रहण की। २१. दीक्षा तिथि : वैशाख सुदी (११) ग्यारस (उसी ( ६४ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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