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ग्रन्थ में समाविष्ट अपूर्व मंत्रों की साधना से दादा सम्मानित श्रेष्ठी श्री वीसल ने पंद्रहवीं शताब्दी में किले गुरूदेव ने सप्तम प्रभाविक सिद्धि प्राप्त की थी । में श्री श्रेयांसनाथ भगवान का मन्दिर बनवाया था ।
दादा गुरूदेव ने जिन-शासन की प्रभावना के अनेकों श्रेष्ठी गुणराज के पुत्र बाल ने पन्द्रहवीं शताब्दी में, कार्य किये जो चिर-स्मरणीय हैं । आज भी दादागुरू कीर्तिस्तंभ के पास, चारों ओर देवकुलिकाओं से साक्षात् हैं । गुरूदेव के स्मरण मात्र से श्रद्धालु शुसोभित विशाल जिनमन्दिर बनवाकर उसमें श्री भक्तजनों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं ।
सोमसुन्दरसूरीश्वरजी के सुहस्त से तीन जिनप्रतिमाओं महाराणा तेजसिंहजी की पटरानी और समरसिंहजी
की प्रतिष्ठा करवायी थी । की मातुश्री जयतल्लदेवी द्वारा यहाँ वि. सं. 1322 में महाराणा मौकल के समय उनके मुख्य मंत्री श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का उल्लेख हैं।
श्री सरणपालजी द्वारा यहाँ अनेकों जिनमन्दिर बनवाने __वि. सं. 1335 फाल्गुन शुक्ला 5 के दिन युवराज
का उल्लेख हैं । मान्डवगढ़ के महामंत्री पेथडशाह ने अमरसिंहजी की सान्निध्यता में श्री आदिनाथ भगवान
भी यहाँ मन्दिर बनवाया था । के मन्दिर पर ध्वजारोहण होने का उल्लेख मिलता है। वि. सं. 1566 में श्री जयहेमरचित तीर्थमाला में एवं वि. सं. 1353 में महाराजा समरसिंह के राज्यकाल वि. सं. 1573 में श्री हर्षप्रमोद के शिष्य गयंदी द्वारा में जलयात्रापूर्वक ग्यारह जिनमन्दिरों में जिनप्रतिमाएँ रचित तीर्थमाला में यहाँ विभिन्न गच्छों के 32 जैनमन्दिर प्रतिष्ठित की गयी थी । श्री कंभाराणा के खजांची श्री रहने का उल्लेख है, जिनमें जैन कीर्तिस्तंभ भी शामिल वेला ने, वि. सं. 1505 में, पुराने जीर्ण मन्दिर के है । इस सात मंजिल के जैन कीर्तिस्तंभ का निर्माणकाल स्थान पर श्री शान्तिनाथ भगवान का कलापूर्ण मन्दिर चौदहवीं सदी का माना जाता है, जो श्री आदिनाथ बनवाकर श्री जिनसेनसूरीश्वरजी के हाथों प्रतिष्ठा भगवान के स्मारक के निमित्त बनाया था । इसमें करवायी थी । इसका नाम अष्टापदावतार श्री अनेकों जिनप्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । शान्तिजिनचैत्य था, जिसे आज शृंगारचौरी कहते हैं । इस समय चित्तौड़ के किले पर निम्र प्रकार छः
वि. सं. 1524 में रचित 'सोमसौभाग्य काव्य' के जिनमन्दिर विद्यमान हैं :अनुसार देवकुलपाटक के निवासी व श्री लाखा राणा से सबसे बड़ा व मुख्य मन्दिर हैं, श्री ऋषभदेव भगवान
जैन कीर्ती स्तम्भ-चित्रकूट
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