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श्री आदिनाथ भगवान चित्रकूट
हराकर वि. सं. 1231 में इस पर अपना अधिकार किया । उसके बाद मुसलमानों का राज्य होते हुए भी चित्तौड़ गुहिलवंशी सिसोदिया राजाओं के अधिकार में ही रहा ।
वि. सं. 1167 में यहाँ श्री महावीर भगवान का मन्दिर निर्मित होने का उल्लेख हैं । युगप्रधान दादा श्री जिनदत्तसूरीश्वरजी को वि. सं.
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1169 वैशाख शुक्ला प्रतिपदा के दिन श्री जिनवल्लभ सूरीश्वरजी के पाट पर विराट महोत्सव के साथ यहीं अभिषिक्त किया गया था । दादागुरू का पूर्व नाम पण्डित सोमचन्द्र गण था । दादागुरू ने अपने योगबल से श्री वज्रस्वामी द्वारा रचित अनेक विद्याओं से युक्त, अद्वितीय, प्राचीन ग्रन्थ को यहाँ के वज्रस्तंभ में से प्राप्त करने में सफलता पाई थी, जो उल्लेखनीय है ।
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