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________________ श्री चित्रकूट तीर्थ तीर्थाधिराज श्री आदिनाथ भगवान, श्वेत वर्ण पद्मासनस्थ, लगभग 35 सें. मी. (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल समुद्र की सतह से लगभग 560 मी. ऊँचे, समतलपर्वत पर बने 32 मील लम्बे व आधा मील चौड़े चित्तौड़ किले में । प्राचीनता विक्रम की प्रथम शताब्दी में श्री सिद्धसेन दिवाकर, जिन्हें सम्राट विक्रमादित्य की राज्यसभा के रत्न बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, यहाँ विद्यासाधन हेतु आकर रहे थे, ऐसा उल्लेख मिलता है। आचार्य श्री हरिभद्रसूरिश्वरजी, जो विक्रम की आठवीं-नवमी शताब्दी में हुए, उनका जन्मस्थान यही शहर है, जो 310 उस समय मध्यमिका नगरी के नाम से प्रसिद्ध था । यह किला मौर्यवंशी राजा चित्रांगद द्वारा निर्मित होने के कारण इसे चित्रकूट भी कहते हैं । विक्रम की आठवीं शताब्दी में मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा बापा रावल ने मौर्यवंशी राजा मान को हराकर किला अपने अधीन किया । बारहवीं शताब्दी में यह सिद्धराज जयसिंह के अधिकार में आ गया । यह अधिकार कुमारपाल राजा के समय तक रहा । कुमारपाल राजा द्वारा उनके प्राण की रक्षा करनेवाले आलिक कुम्हार को सात सौ गाँवों सहित चित्रकूट पट्टा करके दिये जाने का उल्लेख मिलता है । राजा कुमारपाल सं. 1216 में जैनधर्म के अनुयायी बने । उसके पूर्व के कुछ शिलालेख मिलते हैं। बाद में कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को मेवाड़ के गुहिलवंशी राजा सामतसिंह ने श्री आदिनाथ जिनालय - चित्रकूट
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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