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________________ मदविजया ओलीकीर रजीमसा रण TENSI अन्तिम शासक श्री वसुराव के रहने का उल्लेख है । एक और उल्लेखानुसार सिंध-सौवीर की राजधानी वितभयपुरपत्तन थी, जिसके शासक प्रभु वीर के परम भक्त राजा उदायन थे व पश्चात् उनके भाणेज श्री केशीकुमार रहे थे । श्री केशीकुमार के शासनकाल में भारी भूकम्प व तूफान आदि के कारण इस नगरी को भारी क्षति पहुँचकर ध्वंस होने का उल्लेख है । वह अति ही जाहोजलालीपूर्व नगरी अभी तक अज्ञात है । जगह की निकटता व नाम में लगभग समानता देखते लगता है संभवतः यही वह नगरी हो क्यों कि जगह की निकटता होने के कारण यह भाग सिंध-सौवीर के अंतर्गत रहा हो व भूकम्प से ध्वंस होने के पश्चात् पुनः बसा हो, लेकिन इसके अन्वेषण की आवश्यकता है । __ लगभग चौदवीं सदी के मध्य तक यह विजयपुरपत्तन नगरी किले के साथ अति ही जाहोजलालीपूर्ण आबाद रहने का उल्लेख है । यह भी कहा जाता है कि जब यह नगर विजयपुरपत्तन कहलाता था उस समय यह नगर आंचन राजपूतों के अधिकार में था । अतः हो सकता है वि. सं. 550 से लगभग चौदवीं सदी तक उनका शासन रहा हो । लगभग चौदवीं सदी के पश्चात् इस पावन स्थल को पुनः भारी क्षति पहुँचने का उल्लेख है । पश्चात् उस विरान सी नगरी का अधिकार रावजोधाजी के पास आया । जोधाजी ने वि. सं. 1517 में अपने पुत्र सुजाजी को अधिकार प्रदान किया । सुजाजी ने यहाँ की पुनः उन्नति के लिये पूर्ण प्रयास किया । पश्चात् इसका कार्यभार अपने पुत्र राव नरा को संभलाया । तदुपरांत इसका कार्यभार नरा के पुत्र राव हमीर के पास आया। राव हमीर का शासन काल लगभग 1590 तक रहने का उल्लेख है । वि. सं. 1515 से 1545 के दरमियान यहाँ किला व जैन मन्दिर भी बनवाने का उल्लेख है । परन्तु संभवतः उस समय जीर्णोद्धार हवा हो क्योंकि पहले किला रहने का उल्लेख आता है । जब भी कहीं कोई नगर बसा तो वहाँ पहिले किले का निर्माण होने व साथ-साथ प्रायः हर जगह जैन मन्दिर भी बनने का उल्लेख आता है । आज भी प्रायः प्रत्येक किले में जैन मन्दिर पाये जाते हैं क्योंकि प्रारंभ से हर राजा को नगर नया या पुनः बसाने व संचालन में जैन श्रावों का हमेशा साथ रहा व प्रायः हर राजा के दीवान, श्री शान्तिनाथ भगवान-विजयपुरपत्तन श्री विजयपुरपत्तन तीर्थ तीर्थाधिराज * श्री शांतिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, लगभग 43 सें. मी. । तीर्थ स्थल 8 फलोदी शहर के सदर बाजार में। प्राचीनता 8 आज का फलोदी शहर पूर्वकाल में विजयनगर, विजैपुर, विजयपुरपत्तन, फलवृद्धिकानगर, फलादी आदि नामों से विख्यात था । कहा जाता है कि इस प्राचीन विजयपुरपत्तन की स्थापना, जैन धर्मोपासक, प.पू. ओशवंश के संस्थापक आचार्य भगवंत श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा प्रतिबोधित, ओसियाँ नगर के शासक, श्री उपलदेव के पुत्र श्री विजयदेव ने की थी । एक अन्य मतानुसार इन्हीं विजयदेव ने वि. सं. 282 में इस नगरी की स्थापना की थी । इसी वंश का शासन लगभग वि. सं. 550 तक रहने का व 282
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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