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श्री मांडव्यपुर तीर्थ
तीर्थाधिराजश्री पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, पीत वर्ण, लगभग 71 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल मंडोर गाँव में बगीचे के पास ।
प्राचीनता आज का मंडोर गाँव प्राचीन काल में मंडोवर, मांडव्यपुर आदि नामों से विख्यात था ।
कहा जाता है कि मांडुऋषि का यहाँ आश्रम था उसी कारण इस गाँव का नाम मांडव्यपुर या मंडोवर पड़ा । यह भी कहा जाता है कि मयदानव द्वारा यह नगर बसाया गया था । जो भी हो इस गौरवशाली गाँव का इतिहास पुराना है, और मारवाड़ की प्राचीन राजधानी बनने का सौभाग्य इस पावन भूमी को प्राप्त हुआ। था ।
उपलब्द्ध शिलालेखों के अनुसार प्रतिहार (पडिहार) वंशी राजाओं की यह राजधानी थी जिन्होंने लगभग आठवीं सदी से वि. सं. 1438 तक राज्य किया । इसी पडिहार वंश के श्री कक्कुक नाहडराय द्वारा
यहाँ जिनेश्वरदेव का मन्दिर बनवाकर वि. सं. 918 चैत्र शुक्ला 2 बुधवार के दिन श्री धनेश्वर गच्छ को अर्पित किये का उल्लेख है । नाहडराय द्वारा सत्यपुर न नाडोल आदि में भी जिनमन्दिरों का निर्माण एवं प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है । अतः हो सकता है यह पडिहार वंश जैन धर्म का उपासक रहा हो, अन्यथा जगह-जगह पर मन्दिर बनवाने व प्रतिष्ठा करवाने का सवाल ही नहीं उठता ।
विक्रम की पन्द्रवीं सदी तक यह स्थल अतीव जाहोजलालीपूर्ण रहा एवं अनेकों सुसम्पन्न श्रावकों के यहाँ रहने का उल्लेख है । यहाँ के श्रेष्ठी श्री गोसल व महण के पुत्र-पौत्रों द्वारा आबू के विमल वसही मन्दिर के जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है । अतः इन्होंने व अन्य श्रावकों ने यहाँ भी कई मन्दिरों का निर्माण अवश्य ही करवाया होगा । आज उन प्राचीन मन्दिरों के भग्नावशेष मात्र कहीं कहीं नजर आते हैं, हो सकता है कालक्रम से उन्हें क्षति पहुँची हो या भूमीगत हवे हों ।
वर्तमान में यहाँ चार जैन मन्दिर है । जिनमें यहाँ के बगीचे के पास वाला श्री पार्श्वनाथ भगवान का
श्री पार्श्वनाथ प्राचीन मन्दिर-मांडव्यपुर
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