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इन प्रभु प्रतिमाओं को रखने से मानसिक क्लेश का अनुभव कर रहा था । आखिर उसने प्रतिमाएँ श्री संघ के सुपुर्द कीं, जिन्हें संघवी श्री वरजंग शेठ ने भव्य मन्दिर का निर्माण करवाकर विक्रम सं. 1662 में स्थापित करवाई । उस अवसर पर गजनीखान ने भी 16 स्वर्ण कलश चढ़ाये थे, ऐसा श्रीपुण्यकमल मुनि रचित "भिनमाल-स्तवन" में उल्लेख है ।
विशिष्टता पौराणिक कथाओं में भी इस नगरी का भारी महत्व दिया है । भगवान श्री महावीर यहाँ बिचरे थे, ऐसा उल्लेख मिलता है । पहली शताब्दी में आचार्य श्री वज्रस्वामी यहाँ दर्शनार्थ पधारे थे । श्री उहड मंत्री व राजकुमार सुन्दर ने यहीं से जाकर ओसियाँ नगरी बसायी थी ।
'शिशुपालवध महाकाव्य' के रचयिता कवि श्री मेघ की जन्मभूमि यही है । ब्रह्मगुप्त ज्योतिषी ने 'स्फुट आर्य सिद्धान्त' ग्रन्थ की रचना यहीं पर सातवीं शताब्दी में की थी । वि. की आठवीं शताब्दी में यहाँ कुलगुरुओं की स्थापना हुई । तब 84 गच्छों के समर्थ आचार्य भगवन्त यहाँ विराजमान थे । शंखेश्वर गच्छ के आचार्य श्री उदयप्रभसूरिजी ने
श्री महावीर भगवान-प्राचीन प्रतिमा विक्रम सं. 791 में प्राग्वट ब्राह्मणों को व श्रीमाल ब्राह्मणों को यहीं जैनी बनाया था ।
कलापूर्ण अवशेषों के खण्डहरों से भरा है । हर मन्दिर आचार्य श्री सिद्धर्षिजी ने प्रख्यात 'उपमितिभवप्रपंच में कई प्राचीन कलापूर्ण प्रतिमाएँ हैं । कथा' की रचना विक्रम सं. 992 में यहीं की थी । मार्ग दर्शन यहाँ का भीनमाल रेल्वे स्टेशन
श्री वीरगणी की जन्मभूमि यही है, जो कि प्रख्यात एक कि. मी. है । गाँव के बस स्टेण्ड से भी मन्दिर पण्डित थे । उन्होंने गुर्जर नरेश चामुंडराज को अपनी एक कि. मी. है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । अलौकिक शक्ति से प्रभावित किया था ।
जालोर सिरोही व जोधपुर आदि स्थानों से सीधी __ श्री सिद्धसेनसूरिजी ने 'सकल तीर्थ स्तोत्र' में इस भिनमाल के लिए बस सर्विस है । यह स्थल जालोर तीर्थ की व्याख्या की है। इस तीर्थ की कीर्ति बढ़ानेवाले से मान्डोली, रामसेन होते हुए लगभग 70 कि. मी. ऐसे अनेकों उदाहरण हैं,जिनका यहाँ शब्दों में वर्णन
है । मान्डोली यहाँ से 30 कि. मी. व भाण्डव्यपुर तीर्थ करना असंभव है।प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णीमा के दिन ध्वजा लगभग 50 कि. मी. दूर है ।। चढ़ाई जाती है।
एँ ठहरने के लिए दो धर्मशालाएँ है, अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त गाँव में कुल 15
(निकट के महावीरजी मन्दिर व किर्ती स्तंम में) जहाँ मन्दिर है । ज्यादातर मन्दिर प्रायः चौदहवीं से अठारहवीं ___पानी, बिजली, बर्तन, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला शताब्दी तक के हैं । इनमें गाँधीमता वास में स्थित की सुविधा उपलब्ध हैं । श्री शान्तिनाथ भगवान के मन्दिर की पुनः प्रतिष्ठा श्री पेढ़ी 8 श्री पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तपागच्छीय हीरविजयसूरिजी के सुहस्ते वि.सं.1634 में हुई थी । ट्रस्ट, हाथियों की पोल, कला और सौन्दर्य % इतनी प्राचीन नगरी में पास्ट : भिनमाल-3430
पोस्ट : भिनमाल - 343029. कलापूर्ण अवशेषों आदि की क्या कमी है । शहर जिला : जालोर, (राज.), फोन : 02969-21190
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