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श्रीमाल व भिनमाल नाम लोक प्रसिद्ध रहे । इस ओसियाँ नगरी उस समय बसी हुयी थी, जब ही वे नगरी का अनेकों बार उत्थान-पतन हुआ ।
वहाँ जाकर बस सके होंगे । जैन मन्दिरों के एक खण्डहर में वि. सं. 1333 का किसी जमाने में इस नगरी का घेराव 64 कि. मी शिलालेख मिला है, जिसमें बताया है कि श्री महावीर था । किले के 84 दरवाजे थे, उनमें 84 करोड़पति भगवान यहाँ बिचरे थे । यह बहुत बड़ा संशोधन का श्रावकों के 64 श्रीमाल ब्राह्मणों के व 8 प्राग्वट ब्राह्मणों कार्य है, क्योंकि जगह-जगह वीरप्रभु इस भूमि में के घर थे । सैकड़ों शिखरबंध मन्दिरों से यह नगरी विचरे थे ऐसे उल्लेख मिले है । संशोधकगण इस तरफ रमणीय बनी हई थी । ध्यान दें तो ऐतिहासिक प्रमाण मिलने की गुंजाइश है। श्री जिनदासगणी द्वारा वि. सं. 733 में रचित
विक्रम की पहली शताब्दी मे आचार्य श्री वजस्वामी निशीथचूर्णि' में सातवीं, आठवीं शताब्दी पूर्व से यह भी श्रीमाल (भिनमाल) तरफ बिहार करने के उल्लेख नगर खूब समृद्धिशाली रहने का उल्लेख है । मिलते है ।
____ श्री उद्योतनसूरिजी द्वारा वि. सं. 835 में रचित एक जैन पट्टावली के अनुसार वीर निर्माण सं. 70 'कुवलयमाला' ग्रंथ में, ऐसा उल्लेख है कि श्री के आसपास श्री रत्नप्रभसूरिजी के समय श्रीमाल नगर । शिवचन्दगणी विहार करते हुए जिनवन्दनार्थ यहाँ पधारे का राजकुमार श्री सुन्दर व मंत्री श्री उहड़ ने यहाँ से व अत्यन्त प्रभावित होकर प्रभु चरणों में यहीं रह गये। जाकर ओसियाँ बसाया था, जिसमें श्रीमाल से अनेकों
सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक प्रायः सारे कुटुम्ब जाकर बसे थे । एक और मतानुसार श्रीमाल
प्रभावशाली आचार्य भगवन्तों ने यहाँ पदार्पण करके इस के राजा देशल ने जब धनाढ्यों को किले में बसने की
शहर को पवित्र व रमणीय बनाया है, व अनेकों अनुमति दी तब अन्य लोग असंतुष्ट होकर देशल के
अनमोल जैन साहित्यों की रचना करके अमूल्य खजाना पुत्र जयचन्द्र के साथ विक्रम सं. 223 में ओसियाँ छोड़ गये हैं जो आज इतिहासकारों व शोधकों के लिए जाकर बसे थे । अतः इससे यह सिद्ध होता है कि एक अमूल्य सामग्री बनकर विश्व को नयी प्रेरणा दे
रहा है ।
लगभग दसवीं, ग्यारहवीं शताब्दी में इस नगर से 18000 श्रीमाल श्रावक गुजरात की नयी राजधानी पाटण व उसके आसपास जाकर बस गये, जिनमें मंत्री विमलशाह के पूर्वज श्रेष्ठी श्री नाना भी थे ।
निकोलस उफ्लेट नाम का अंग्रेज व्यापारी ई. सं. 1611 में यहाँ आया जब इस शहर का सुन्दर व कलात्मक किला 58 कि. मी. विस्तार वाला था, ऐसा उल्लेख है । आज भी 5-6 मील दूर उत्तर तरफ जालोरी दरवाजा, पश्चिम तरफ सांचोरी दरवाजा, पूर्व तरफ सूर्य दरवाजा व दक्षिण तरफ लक्ष्मी दरवाजा है। विस्तार में ऊंचे टेकरियों पर प्राचीन ईंटों, कोरणीदार स्तम्भों व मन्दिर के कोरणीदार पत्थरों के खंडहर असंख्य मात्रा में दिखायी देते हैं ।
आज यहाँ कुल 11 मन्दिर हैं जिनमें यह मन्दिर प्राचीन व मुख्य माना जाता है । प्रतिमाजी के परिकर पर वि. सं. 1011 का लेख उत्कीर्ण है । यह प्रतिमा
भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । भूगर्भ से प्राप्त यह व अन्य श्री पार्श्वनाथ भगवान मन्दिर-भिनमाल
प्रतिमाएँ, जालोर के गजनीखान के आधीन थीं । वह
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