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2017XX
श्री महावीर भगवान मन्दिर - सत्यपुर
श्री सत्यपुर तीर्थ
श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ,
तीर्थाधिराज श्वेत वर्ण (श्वे. मन्दिर ) । तीर्थ स्थल साँचोर गाँव के मध्य । प्राचीनता यह तीर्थ प्रभु वीर के समय का बताया जाता है । 'जग चिन्तामणि' स्तोत्र में इस तीर्थ का वर्णन है । कहा जाता है इस स्तोत्र की रचना भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामीजी ने की थी । साँचोर का प्राचीन नाम सत्यपुर व सत्यपुरी था।
पराक्रमी श्री नाहड़ राजा ने आचार्यश्री से उपदेश पाकर विक्रम सं. 130 के लगभग एक विशाल गगनचुम्बी मन्दिर का निर्माण करवाकर वीर प्रभु की स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य श्री जज्जिगसूरिजी के सुहस्ते प्रतिष्ठित करवाई थी, ऐसा चौदहवीं शताब्दी में श्री जिनप्रभसूरिजी द्वारा रचित 'विविध तीर्थ कल्प' में उल्लेख है ।
'विविध तीर्थ कल्प' में यह भी कहा है कि इस तीर्थ की इतनी महिमा बढ़ गयी थी कि विधर्मियों को ईर्ष्या
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होने लगी । इसको क्षति पहुँचाने के लिए विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में मालव देश के राजा, वि. सं. 1348 में मुगल सेना, वि. सं. 1356 में अलाउद्दीन खिलजी के भाई उल्लुधखान आये । लेकिन सबको हार मानकर वापस जाना पड़ा । प्रतिमा को कोई क्षति न पहुँचा सका । आखिर वि. सं. 1361 में अलाउद्दीन खिलजी खुद आया व उपाय करके मूर्ति को दिल्ली ले गया, ऐसा उल्लेख है वि. की तेरहवीं शताब्दी में कन्नोज के राजा द्वारा भगवान महावीर का मन्दिर कष्ट में बनवाने का उल्लेख है । गुर्जर नरेश अजयपाल के दण्डनायक श्री आल्हाद द्वारा वि. की तेरहवीं सदी में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित करने का उल्लेख है । यहाँ पर एक प्राचीन मस्जिद है, जो प्राचीन काल में जैन मन्दिर रहा होगा ऐसा कहा जाता है । मस्जिद में पुराने पत्थरों पर कुछ शिलालेख है, जिसमें वि. सं. 1322 वैशाख कृष्णा 13 को भंडारी श्री छाड़ा सेठ द्वारा महावीर भगवान के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाने का लेख उत्कीर्ण है ।
वर्तमान मन्दिर के निर्मित होने के समय का पता नहीं लगता । जीर्णोद्धार वि. सं 1963 में हुआ था। जो स्वर्णमयी प्रतिमा अल्लाउद्दीन खिलजी दिल्ली ले गया था, उसका पता नहीं । वर्तमान प्रतिमा भी प्राचीन व प्रभावशाली है। अभी पुनः जीर्णोद्धार चालू है । विशिष्टता भगवान श्री महावीर के समय का यह तीर्थ होने व प्रभु के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी द्वारा 'जगचिन्तामणि स्तोत्र में इस तीर्थ का वर्णन करने के कारण यहाँ की महान विशेषता है ।
कविवर उपाध्याय श्री समयसुन्दरजी की यह जन्मभूमि है, जिनका जन्म विक्रम की सत्रहवीं सदी में हुआ था । वर्तमान में भी इस मन्दिर को जीवित स्वामी मन्दिर कहते हैं ।
अन्य मन्दिर इसके अतिरिक्त यहाँ पर 6 और मन्दिर व एक दादावाड़ी है ।
कला और सौन्दर्य पुराने मन्दिरों के ध्वंस हो जाने के कारण प्राचीन कलाकृतियों कम नजर आती हैं। मस्जिद जो प्राचीन जैन मन्दिर बताया जाता है, वहाँ प्राचीन अवशेष दिखायी देते है ।
मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन राणीवाड़ा 48 कि. मी. है, जहाँ से बस व टेक्सी की