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श्री सियाणा तीर्थ
तीर्थाधिराज श्री सुविधिनाथ भगवान, पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण ( श्वे. मन्दिर ) ।
सियाणा शहर के पहाड़ी
तीर्थ स्थल की ओट में । प्राचीनता कृष्णावती नदी के पश्चिमी किनारे "कालो" नामक पहाड़ी की ओट में उत्तर तरफ स्थित यह सियाणा शहर पूर्वकाल में साणारा के नाम विख्यात था ।
कहा जाता है, यहाँ पर पूर्वकाल में परमार, सोलंकी, सोनगरा, चौहान आदि शासकों का शासन रहा था, परन्तु यह पता लगाना कठिन है कि इस शहर की स्थापना कब व किसने की थी ।
इस भव्य मन्दिर का निर्माण गुर्जर नरेश महाराजा कुमारपाल द्वारा वि. सं. 1214 में होकर कलिकालसर्वज्ञ आचार्य भगवंत श्री हेमचन्द्राचार्य के करकमलों द्वारा अतीव उत्साह पूर्वक प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है ।
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लगभग उसी समय इसके पश्चात् इसी शहर के निकटतम स्थित जालोर के स्वर्णगिरि पर्वत पर भी महाराजा कुमारपाल द्वारा मन्दिर का निर्माण होकर वि. सं. 1221 में आचार्य भगवंत श्री वादीदेवसूरीश्वरजी के करकमलों द्वारा प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है ।
उक्त विवरणों से यह सिद्ध होता है कि यह शहर उसके पूर्व ही बस चुका था व यहाँ समृद्धिशाली श्रावकों का निवास रहा होगा जिसके कारण आचार्य भगवंतों का इधर आना हुवा व कुमारपाल राजा द्वारा मन्दिरों के निर्माण होने व ऐसे प्रकाण्ड आचार्य भगवंतों के करकमलों द्वारा प्रतिष्ठा होने का सौभाग्य इस पावन भूमि को प्राप्त हुवा |
महाराजा कुमारपाल ने आचार्य भगवंत श्री हेमचन्द्राचार्य से प्रेरणा पाकर अनेकों जगह मन्दिर बनवाये व प्रतिष्ठा करवाई जिनमें कई अभी भी विद्यमान है ।
श्री जयसिंहसूरीश्वरजी द्वारा रचित श्री कुमारपाल चरित्र में भी महाराजा श्री कुमारपाल द्वारा गुर्जर, लाट, सौराष्ट्र भभेरी, कच्छ, सिंधव, उच्च, जालंधर, काशी, सपादलक्ष, अन्तर्वेदी, मरु, मेदपाट, मालव, आमीर,
श्री सुविधिनाथ जिनालय - सियाणा