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बाबा
श्रीसुमतिसूरिजी वि. सं. 1237 में व श्री विजयदेवूसरिजी द्वारा वि. सं. 1686 में यहाँ मन्दिरों की प्रतिष्ठापना करवाने के उल्लेख यहाँ शिलालेखों में पाये जाते हैं । श्री ज्ञानविमल सूरिजी द्वारा वि. सं. 1755 में रचित तीर्थ माला में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । मूल प्रतिमा पर वि. सं. 1686 का लेख उत्कीर्ण है । अन्य प्रतिमाओं पर वि. सं. 1215 का लेख है । सदियों से यह स्थल जाहोजलालीपूर्ण रहा । किसी समय यह एक विराट नगरी रही होगी, ऐसा जगह जगह पर उपलब्ध ध्वंसावशेषों से व उल्लेखों से प्रतीत होता है।
विशिष्टता यहाँ श्री नेमिनाथ भगवान के मन्दिर में एक प्राचीन भोयरा है । कहा जाता है यह भोयरा नाडलाई तक जाता है । वि. सं. 300 के पूर्व आचार्य श्री मानदेवसूरीश्वरजी ने तक्षशिला में फैले महामारी उपद्रव शान्ति के लिए इसी भोयरे के अन्दर योग साधना कर 'लघुशान्ति' स्तोत्र की रचना की थी। लघुशान्ति स्तोत्र आज भी शान्ति के लिए हर जगह
मन्दिर का कलात्मक शिखर
श्री नाडोल तीर्थ
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तीर्थाधिराज * श्री पद्मप्रभ भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, लगभग 135 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) ।
तीर्थ स्थल नाडोल गाँव के मध्यस्थ ।
प्राचीनता * शास्त्रों में इसका नन्दपुर, नड्डूल, नडूल, नदूल, नर्दुलपुर आदि नामों का वर्णन है । यह तीर्थ अति ही प्राचीन, संप्रति राजा के पूर्व का माना जाता है । वि. सं. 300 के पूर्व श्री देवसूरिजी के शिष्य आचार्य श्री मानदेवसूरिजी ने यहाँ चातुर्मास करके 'लघुशांति स्तोत्र' की रचना की थी । वि. सं. 700 में श्री रविप्रभसूरिजी द्वारा श्री नेमिनाथ भगवान के प्रतिम की प्रतिष्ठा हुए का उल्लेख है । सं. 1228 के एक भेंट पत्र से प्रतीत होता है, चौहाणवंशीय राजा आलनदेव ने श्री महावीर भगवान का मन्दिर बनवाया था ।
श्री शालिभद्रसूरिजी वि. सं. 1181 में, श्रीदेवसूरिजी के शिष्य श्री पद्मचन्द्रगणिजी वि. सं. 1215 में, 346
श्री पद्मप्रभ भगवान मन्दिर-नाडोल