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________________ सुचरित्रम् चेतन व जड़ तत्त्वों की पृथक्ता से आत्मा का मोक्ष होता है। उपनिषदों में आत्मा को विषयी तथा ब्रह्म को विषय बताया गया है। आत्मा के चार प्रकार- 1. शरीरी आत्मा 2. तैजस आत्मा 3. प्रज्ञा रूप आत्मा तथा 4. तूरीयावस्था स्थित आत्मा जो ब्रह्मलीन एवं आनन्दमय। सूत्रों में आत्मा को संसारी एवं सिद्ध रूपों में विभाजित किया गया है। __ अनेकान्तवादी यथार्थ : सत्य के साथ साक्षात्कार को जीवन साधना का प्रधान लक्ष्य माना गया है। एकान्तवाद में सत्य का हठ तो है, पर सत्यता नहीं। प्रत्येक वाद में न्यूनाधिक सत्य का अंश होता है, अतः किसी भी तत्त्व या पदार्थ के सभी पहलुओं का जिसमें होता है अध्ययन । सर्वांशतः जाने बिना जिससे पूर्ण सभ्यता के दर्शन नहीं होते इसी समग्र दर्शन का नाम है अनेकान्तवाद । वेदान्त के नित्यवाद तथा बौद्धों के अनित्यवाद की एकान्तिकता को जैनों के अनेकान्तवाद ने सत्य का दर्शन कराया। नैतिक आदर्शवाद : जिसमें संसार और जन्म को दुःख का मूल बताया गया है। बुद्ध के चार आर्य सत्य-1. दुःख विद्यमान है, 2. इसके कारण विद्यमान है, 3. इसके निरोध के उपाय विद्यमान है और 4. इनकी सफलता का मार्ग भी विद्यमान है। नैतिक आदर्शवाद को साध्य माना गया। __ नास्तिकवाद और आस्तिकवाद : जो ईश्वर की सत्ता माने वह आस्तिक और न माने वह नास्तिक। वेदों के अंधे आस्तिकवाद पर जैन व बौद्ध मान्यताओं ने चोट की तो उन्हें नास्तिक बताया गया, क्योंकि जैन आत्मा के ही परमात्म स्वरूप में समुन्नत होने के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। गीता ने धुंध खाये आस्तिकवाद को फिर से चमकाया और उसे ज्ञान व भक्ति के साथ जोड़ा। गीता का उपदेश ब्रह्म संबंधी दर्शनशास्त्र का धार्मिक अनुशासन कहा जा सकता है। तर्क सम्मत यथार्थवाद : अध्यात्म विषयक समस्याओं की तार्किक समीक्षा के रूप में सामने आया न्यायशास्त्र। वाचस्पति का न्यायशास्त्र प्रमुख है। अन्य है गौतम, जयन्त, शंकर, धर्मकीर्ति, भद्रबाहु, विश्वनाथ आदि। न्यायशास्त्र के विषय हैं-प्रत्यक्ष प्रमाण, अनुमान प्रमाण, कार्य प्रमाण भाव, तर्क और वाद, स्मृति, हेत्वाभास, भ्रान्ति आदि। ___ परमाणु विषयक अनेकवाद : यह वैशेषिकदर्शन की उपज थी। कणाद ऋषि इसके प्रवर्तक थे। ज्ञान, पदार्थ तथा द्रव्य का विश्लेषण करना इनका लक्ष्य रहा। परमाणुवाद की परिकल्पना की गई। गुण को द्रव्याश्रित माना गया। कुल 24 गुण व 3 संस्कार (वेग, भावना, स्थिति) बताये गये। परमाणु विषयक अनेकवाद भौतिक जगत् की व्याख्या के लिये आवश्यक सिद्ध हुआ। पुरुष व प्रकृति का सिद्धान्त : कपिल ऋषि के सांख्य दर्शन ने संसार को ईश्वर की रचना नहीं माना और उसे असंख्य आत्माओं तथा कर्मशील प्रकृति की परस्पर प्रतिक्रिया का परिणाम बताया। इसमें प्रकृति के गुण व विकास का नया विश्लेषण हुआ। अन्य दार्शनिकों ने सांख्य दर्शन के पुरुष और प्रकृति विषय को क्लिष्ट व भ्रामक कहा। .. __योगशास्त्र पर विशद विश्लेषण : योग को सामान्य रूप में एक क्रियाविधि कहा गया, जिसका क्रियात्मक रूप संयमी जीवन होता है। पातंजलि का योगशास्त्र प्रमुख है। आत्मविषयक यथार्थता की
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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