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________________ सुचरित्रम् व्यवस्था का एक-एक सूत्र गठा हुआ रहेगा। फिर जब सधे हुए मन का सम्बल मनुष्य को मिला हुआ हो तब तो कोई आशंका नहीं बचेगी कि किसी भी व्यवस्था में विघ्न या विकार आ सके। मनुष्य धर्म को धारण करके ही व्यवस्था का संचालन करे : व्यवस्था का संचालन तभी शुभ एवं शुद्ध बना रह सकता है जब मनुष्य धर्म को धारण करके व्यवस्था को संचालित करे। धारण करें तो धर्म है, वरना धर्म का कोई अर्थ नहीं। धर्म की विद्वत्तापूर्ण अनेक व्याख्याएं की गयी है, किन्तु धर्म का मूल तात्पर्य है कर्त्तव्य । कहां-कहां, किन परिस्थितियों में किस-किस रूप में मनुष्य को क्या करना चाहिये जिससे कि सबका हित संपादन हो और उसका स्वयं का विकास हो। मोटे तौर पर वे ही उसके कर्त्तव्य होते हैं। कर्त्तव्य का अर्थ होता है करने योग्य! और यह कर्त्तव्य किस के प्रति होता है-विश्व के प्रति, राष्ट्र के प्रति, समाज के प्रति, प्राणियों के प्रति, परिवार के प्रति अथवा स्वयं के प्रति। ऐसे कर्त्तव्य महापुरुषों द्वारा उपदिष्ट सत्ता द्वारा निश्चित किये जाते हैं। इन सबके साथ अपनी खुद की भीतर की आवाज कठिन से कठिन समय में भी कर्तव्य का निर्देश कर देती है तो इन सभी कर्तव्यों के पुंज एवं उनके स्वस्थ मन से पालन करने की निष्ठा को धर्म कहा जा सकता है। इस धर्म की सच्चाई यह है कि यह पूरे प्राणी जगत्, मानव समाज एवं उसकी व्यवस्था का हित चिन्तक होता है। ___धर्म के इस वास्तविक स्वरूप के साथ जब तक मनुष्य का मन एकीभूत रहता है, तब तक व्यवस्था का संचालन भी शुद्ध बना रहता है तथा सुचारु भी हो जाता है। मनुष्य समुदाय में कर्तव्य के दृष्टिकोण की प्रमुखता स्वयमेव अधिकारों की प्रदाता बन जाती है। जिसके प्रति कर्त्तव्य का निर्वाह किया जाता है, उसका कर्तव्य बनता है कि वह उसका समादर करे, उसके आदेश-निर्देश को माने। इस प्रकार कर्तव्य से अधिकार मिलता है। स्वस्थ संचालन के लिये कर्तव्यों पर बल दिया जाना चाहिये, अधिकारों पर नहीं, क्योंकि अधिकार तो कर्तव्यों से अपने आप उपज जाएंगे। परन्तु जब अधिकारों पर ही सारा बल दे दिया जाता है तो कर्त्तव्य पालन शिथिल व निष्क्रिय हो जाता है और व्यवस्था का क्रम विकृत एवं अस्थिर होने लगता है। __ मनुष्य द्वारा व्यवस्था के संचालन से एक जुड़ा हुआ प्रश्न है नैतिकता का। मानव मन आज के कम्प्यूटर की तरह संस्कारित, दक्ष और प्रशिक्षित नहीं होता है अतः उसके लिये प्रशिक्षक का कार्य करती है नैतिकता। अंग्रेजी शब्दों के कारण नैतिकता का स्वरूप कुछ भ्रामक बन गया है। मॉरेलिटी' शब्द का उपयोग नैतिकता के लिये होता है जबकि नैतिकता का सही शब्द 'एथिक्स' है। 'मॉरेलिटी' का सही अर्थ है लोकाचार । लोकाचार या नैतिकता का आपस में कोई संबंध नहीं। अत: सही शब्द है सदाचार । व्यवस्था के सम्यक् संचालन में जिस सद्गुण की आवश्यकता होती है, वह है सदाचार । सदाचार क्या? यह व्यवस्था का स्थायी, सार्वदेशिक तथा सार्वकालिक गुण है। इसके विपरीत लोकाचार देश-काल की परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। सदाचार सदा सत्य से ही जाना जाता है, सत्य से ही अनुभूत किया जाता है एवं सत्य के साथ ही जिया जा सकता है। इसी सदाचार का दूसरा नाम चरित्र है। अतः किसी भी व्यवस्था की कसौटी यह है कि वह कैसे चरित्र के
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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