SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुचरित्रम् शक्तियों का रूपांतरण ही जीवनोत्थान का सुदृढ़ सोपान है। यही जीवन की वास्तविक दीक्षा है। शक्तियों के रूपांतरण के बाद में भी व्यवहार यथार्थ में व्यवहार बनता है, वाणी सम्यक् स्वरूप ग्रहण करती है तथा चिंतन की वास्तविकता प्रकट होती है। बिखरी हुई मिट्टी को अगर खाद, बीज, पानी का अनुकूल संयोग मिल जाता है तो अन्न की सफल उपजती है, लता गुल्म आच्छादित होते हैं और रंग व सुगंध से भरपूर पुष्प खिलखिलाते हैं। यही मिट्टी कुंभकार के हाथ में चली जाती है तो उपयोग व सजावटी कलाकृतियों में बदल जाती है। कर्मबद्ध आत्मा ऐसी ही बिखरी हुई मिट्टी है, जिसे ध्यान साधना का संयोग मिल जाए तो वह कर्म मुक्ति की दिशा में खिलखिलाता फूल बनकर अपनी सुगंध लुटा सकती है। मिट्टी से ही मूर्ति बनती है, दीपक बनता है, जो उजाला फैलाता है। फिर यह आत्मा तो जीवन्त तत्त्व है-यदि शक्तियों का सफल रूपांतरण हो जाए तो क्या-क्या चमत्कार इससे उद्भुत नहीं हो सकते? ____ ध्यान करने, विचारने और चिंतन-मनन करने का तथ्य यही है कि वर्तमान में हमारी जीवनशक्तियाँ विभावों में भटक रही है-विपथगामी है अथवा स्वभाव प्राप्ति की दिशा में आगे से आगे बढ़ रही सत्पथगामी? शक्तियों के रूपांतरण का क्रम इसी बिन्दु से आरंभ होता है। इस आकलन के बाद संकल्प बने और ध्यान साधना की आराधना गहरी हो, क्योंकि शक्तियों के रूपांतरण का मूलाधार यह ध्यान योग ही है। यही शक्ति का सृजन करता है, उसे शुभता में नियोजित करता है तथा चरित्र का सर्वोच्च विकास साधते हुए उसे शिखर तक पहुँचाता है। ध्यान का ज्ञान-विज्ञान तथा स्वयं की स्वयं द्वारा शोध : वस्तुतः ध्यान योग की स्थापना उन ध्यानी पुरुषों ने की है, जिन्होंने ध्यान-साधना के माध्यम से बुद्धत्त्व, जिनत्व तथा सिद्धत्त्व की ज्योति उपलब्ध की। महावीर, बुद्ध आदि ध्यान योगियों ने इस साधना से ही अहिंसा, दश, करुणा तथा मानवीय मूल्यों के फूल खिलाए हैं, जिनकी सुगंध आज की पीढ़ी सुरक्षित नहीं रख पा रही है-यह दयनीय स्थिति है, किन्तु यह स्थिति निराशा की नहीं, उत्साह की हेतु बननी चाहिए कि चरित्र निर्माण अभियान को सर्वग्राही, व्यापक एवं विस्तृत बनाने के सामूहिक प्रयास तुरन्त प्रारंभ किए जाए। अभियान की उच्चतर श्रेणियों में ध्यान साधना को पूरा-पूरा महत्त्व दिया जाना चाहिए ताकि आत्मशुद्धि के आयाम को सभी क्षेत्रों में क्रियाशील बनाया जा सके। ___ भगवान् महावीर के जीवन पर दृष्टिपात करें तो विदित होगा कि उनके दर्शन का मूल मार्ग ही ध्यान है। वे बारह वर्षों तक कठोर तपस्या करते रहे। क्या थी वह तपस्या? वह ध्यान साधना की उच्चता थी, मौन की पारंगतता थी। ध्यान और मौन में खिली थी उनकी वीतरागता। इस लम्बी अवधि में उन्होंने आत्मा का शुद्धिकरण किया, उसका अनुसंधान किया और उसकी परम उज्ज्वलता अवाप्त की। ध्यान के ज्ञान-विज्ञान का उजला पक्ष यही है कि स्वयं की स्वयं द्वारा शोध सफलता के साथ सम्पन्न हो। सत्य तो यह है कि स्वयं का अनुसंधान ही ध्यान साधना है-यही इसका ज्ञान एवं विज्ञान है। ध्यान में यह चिंतन रमना चाहिए कि आज हम क्या हैं, हमारा आत्म स्वरूप कैसा है और स्वरूप 572
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy