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________________ सुचरित्रम् जो सबके पैरों में समाया हुआ चलता है जो तुम सबके घट में व्याप्त है उसकी आराधना करो और अन्य सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो। जो एक साथ ऊंचे पर नीचे भी हैं पापी और महात्मा ईश्वर और निकृष्ट कीट एक साथ ही है उसी का पूजन करो जो दृश्यमान है, ज्ञेय है, सत्य है, सर्वव्यापी है और अन्य सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो। ओ विमूढ़, जागृत देवता की उपेक्षा मत करो उसके अनन्त प्रतिबिम्बों से ही यह विश्व पूर्ण है काल्पनिक छायाओं के पीछे मत भागो जो तुम्हें विग्रह में डालती है उस परम प्रभु की उपासना करो जिसे सामने देख रहे हो और अन्य सभी प्रतिमाओं को तोड़ दो सोचिए कि आप सामने क्या देख रहे हैं? जो सामने देख रहे हैं उसी की उपासना करो, उसी का हित साधन करो और उसी की सेवा में अपने समग्र जीवन का समर्पण कर दो। यही हो सकती है उत्कृष्ट चरित्रशीलता एवं वेगवान यौवन की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता। इस उद्देश्य पूर्ति के लिए सच पूछे तो अपेक्षित है नए मानव का जन्म। इसके लिए जरूरत होती है संस्कारों तथा शिक्षा की, क्योंकि इनकी उपलब्धि से ही समस्याएं सुलझेगी। किन्तु संस्कार और शिक्षा भी हमारे यहां समस्याएं हैं। संस्कारों की समस्या सुलझेगी चरित्र निर्माण से तथा शिक्षा में भी ज्ञेय, हेय एवं उपादेय का ज्ञान जोड़ा जाएगा तो वह भी निर्माणकारी बन जाएगी। आदर्श युवक या युवती किसे मानें? उसके लिए यह पंचशील की कसौटी है 558
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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