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युवाओं, उठो और इस विजय अभियान को सबल नेतृत्व दो!
1. आत्मविश्वासशील : अपनी आन्तरिक दृढ़ता पर जिसका अटल विश्वास होता है, वह कभी किसी अंधविश्वास की ओर नहीं मुड़ता है तथा गलत बहकावों में भी नहीं आता है । दृष्टा भाव इस आत्मविश्वास को पुष्ट करता हुआ बढ़ता रहता है।
2. सहनशील : जो शक्तिधारी होता है और उस शक्ति के साथ विवेक व चरित्र जुड़ा हुआ होता है, वह कभी भी आक्रामक, असहिष्णु अथवा अहंकारी नहीं होता है। विवेक उसे सहनशील बनना सिखाता है। सहनशीलता व्यक्ति को दोषमुक्त बनाती है।
3. विचार - विवेकशील : आचरण के साथ विवेक तभी स्थिरता से संयुक्त रह सकेगा जब वैचारिकता पर भी विवेक का पूरा प्रभाव हो । विवेकशीलता आत्म-नियंत्रण का श्रेष्ठ गुण होता है । 4. कर्म - पुरुषार्थशील : आचार और विचार से पुष्ट बनने वाली चरित्रशीलता कभी भी निष्क्रिय नहीं रह सकती है । वह कर्म करेगी, अपने पुरुषार्थ का प्रयोग करेगी ताकि व्यक्ति से लेकर विश्व तक का वातावरण हितावह बन सके ।
5. चरित्रशील : चरित्र निर्माण की सक्रियता का सुपरिणाम चरित्रशीलता में विकसित होता है। एक चरित्रशील व्यक्ति सदैव लोक कल्याण में निरत रहता है तथा विश्व में चरित्र निर्माण को सदैव एवं सर्वत्र प्रोत्साहित करता रहता 1
यह पंचशील अपने जीवन मे अपना कर जो युवक एवं युवती किसी सदुद्देश्य के लिए काम करते हैं, उनके स्वभाव में निम्न उपलब्धियां स्वतः ही प्रकट होती रहेगी तथा उसके चरित्र को निखारती रहेगी
यह युवक या युवती बनेंगे - 1. तनाव मुक्त होकर जीने वाले, 2. प्रति स्रोत में चलना जानने वाले, 3. वर्तमान में जीने वाले, 4. परिस्थितियों से लोहा लेने वाले, 5. पुरुषार्थ का प्रयोग करने वाले, 6. आत्मविश्वास को बढ़ाने वाले तथा, 7. संयत एवं अनुशासित होकर रहने वाले। नए मानव की संरचना में ये कारक महत्त्वपूर्ण हैं- 1. कर्ता के साथ ज्ञाता बनना, 2. दृष्टाभाव जागृत करना- तथा, 3. संकल्पशक्ति को बढ़ाना। नए मानव के तीन आयाम हो सकते हैं - 1. सहजता, 2. सामान्यता तथा 3. सर्वप्रकार की समता ।
चरित्र निर्माण के महत्कार्य में ईश्वरत्व का दर्शन करे यौवन :
युवानों के लिए चरित्र निर्माण से बढ़ कर अन्य कोई रचनात्मक कार्य नहीं हो सकता है। सचमुच में चरित्र निर्माण एक महत्कार्य है । जब गुणवान्, विवेकवान् एवं चरित्रवान् युवा वर्ग इस महत्कार्य में स्वयं को प्रवृत्त बनाएगा तो उसे इसमें उस ईश्वरत्व के दर्शन करने चाहिए, जो पद दलित, शोषित एवं उत्पीड़ित मानव को दु:ख मुक्त एवं उन्नतिशील बनाने के लिए सदा अद्भुत प्रेरणा देता आया है। जो इस रूप में कर्मयोगी बनता है उसे ईश्वरत्व का साक्षात्कार अवश्य होता है। क्या होता है कर्मयोग? इसकी सीधी सादी परिभाषा यह है कि जो भी सत्कार्य आप अपने हाथ में लेते हैं, उसे सच्चाई और ईमानदारी के साथ पूरा करें तथा उसके बदले में कभी भी कुछ न चाहें। उस कार्य पूर्ति को आत्मसन्तोष का विषय समझना चाहिए। जो केवल अपनी आत्मवृत्तियों को तृप्त करने के लिए
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