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________________ सुचरित्रम् को कष्टकारक बनाती जा रही है। ___ मानव का लोभ आज उसके लिये ही घातक और संहारक बन गया है जो धरती के अस्तित्व को ही खतरे में डाल रहा है। जब तक मानव प्राकृतिक सम्पदा एवं प्राप्तियों का सदुपयोग करता रहा, तब तक उसका जीवन, उसके विचार, उसके कार्यकलाप भी शुद्ध और फलदायक बने रहे। किन्तु वैज्ञानिक उपलब्धियों के दुरुपयोग पर जब वह अपने अनियंत्रित स्वार्थ के कारण उतर आया, तभी से प्रकृति एवं पर्यावरण का विनाश आरंभ हो गया, जो क्रम इस समय तेजी से चल रहा है। ___आज तो चेतावनी की वेला है कि मनुष्य अपनी विकृतियों से ऊपर उठे तथा प्रकृति व पर्यावरण में विकृतियाँ फैलाने से बाज आवे, अन्यथा सर्वनाश के मार्ग पर ही वह चल रहा है-यही माना जाएगा। यह वह नाजुक घड़ी है जब मनुष्य को पूरी तरह से जागना और चेतना चाहिए। लेकिन प्रश्न है कि पूरी मानव जाति की जागृति क्या निकट भविष्य में संभव मानी जा सकती है? मेरा उत्तर है कि असंभव नहीं और जागृति का यह शंख चरित्रबल की पुष्टता से ही बजाया जा सकता है। आज ज्ञानविज्ञान के जिन साधनों को मानव ने अपने ही स्वार्थ साधन एवं दुरुपयोग से संहारक बना डाला है, उन्हें हितकारी स्वरूप भी मानव ही प्रदान कर सकता है। मानव के चरित्र में यदि सामान्य ऊंचाई भी आने लगे और प्रकृति व पर्यावरण को यानी कि सूक्ष्मजीवों को वह पूरा संरक्षण दे सके तो परिस्थितियों के बदलने में अधिक समय नहीं लगेगा। मानव जाति को चरित्र निर्माण के एक जबरदस्त आन्दोलन में बहा ले जाने की जरूरत है और इस जरूरत को कम संख्या में होते हुए भी चरित्रशील व्यक्ति पूरी कर सकते हैं। व्यक्ति ही है सकल विश्व एवं उसकी समस्त व्यवस्था की धुरी : धुरी का अर्थ आप समझते हैं? धुरी उस केन्द्र दंड को कहा जाता है जिस पर पूरा ढांचा टिका रहता है। विश्व का जो यह विशाल ढांचा है वह व्यक्ति की धुरी पर ही टिका हुआ है। विश्व यदि सबसे बड़ा घटक है तो व्यक्ति उसका सबसे छोटा घटक। विश्व एक भूगोल है, जहाँ द्वीप, महाद्वीप, सागर, महासागर, देश, प्रदेश आदि अनेकशः भूखण्ड फैले हुए हैं-यह दूसरी बात है, किन्तु भावनात्मक आदि दृष्टियों से विश्व मानव समाज का ही वृहत्तम संगठन है। इसी में निजी, सरकारी आदि अनेक प्रकार के संगठन कार्यरत हैं और उन सबका कार्य व्यक्ति पर ही निर्भर है। ___ यथार्थ तो यह है कि व्यक्ति ही सब कुछ है, क्योंकि व्यक्ति ही एक सजीव प्राणी है तथा ये सारे संगठन निर्जीव हैं या व्यक्ति की ही कृतियां हैं। समझिये कि एक संघ है तो संघ क्या है? उसके सदस्यों का समूह ही तो है। और समूह के सदस्य कौन? व्यक्ति ही तो। कोई भी संघ, संगठन, राष्ट्र या अन्तर्राष्ट्रीय संस्था व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा ही तो संचालित होता है। आशय यह कि व्यक्ति और व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है। तो क्या वस्तुस्थिति यह है कि व्यक्ति ही सब कुछ है शक्तियों से सम्पन्न और समाज कुछ भी नहीं, क्योंकि उसका संचालक व्यक्ति ही होता है? लेकिन वस्तुस्थिति पूर्णतया यह भी नहीं होती है। व्यक्ति की जितनी शक्ति होती है, उससे कई गुनी शक्ति समाज की बन जाती है। इसका रहस्य यह 28
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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