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सुचरित्रम्
चलती रहे तो उसके चलन को कभी खतरा पैदा नहीं होता। उसका चाल-चलन दूसरों के लिए अनुकरण करने लायक बन जाता है। जीवन का मूल मंत्र है-उठो, चलो, चलते रहो-साथ न हो तो अकेले ही चलो पर चलो:
जीवन का यही मूलमंत्र जीने की कला सिखाता है, उसे अर्थ देता है, उसे गति तथा गति से प्रगति की ओर मोड़ता है तथा जीवन की समग्रता को अभिव्यक्त करता है। चलना जीवन है और ठहर जाना मरण। शरीर में प्राण भले रहे, पर स्थगन मृत्यु से भी बुरा होता है। यह मूलमंत्र चलने के तीन चरणों पर प्रकाश डालता है__ 1. पहला चरण है : उठो और चलो। जीवन की यह विडम्बना अनेकों के साथ जुड़ी हुई है कि जीते हुए भी वे नींद में सोए हैं, आलस्य में जकड़े हैं और निष्क्रियता में पड़े हैं। उन्हें जीवन का कोई भान नहीं है। कुछ ऐसे हैं जो सोए भी हैं और जागते भी रहते हैं, पर उठते नहीं। जो पूरी तरह नींद में हैं उनको भी जगाना होता है और अधसोयों को भी। किन्तु दोनों का फर्क समझ लें। नींद में पूरी तरह सोयों को उठाना आसान है लेकिन अधसोयों को उठाना जरा कठिन होता है, क्योंकि वे जगाने का बहाना तो करते हैं परन्तु असल में जागते नहीं हैं। तो मूलमंत्र के इस पहले चरण में चरित्र निर्माण अभियान के सहभागियों को पहला नारा देना चाहिए कि उठो, नींद से जागो और अपने को सावधान बना लो। फिर दूसरा नारा लगाइए कि चलो। यह नारा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि चलने का ही नाम जिन्दगी है। जब कोई जाग कर, उठ कर चल देता है तो फिर वह आलस्य के अधीन नहीं होता हैप्रमाद से अप्रमाद को अपना लेता है। चलने का प्राण होती है स्फूर्ति और स्फूर्तिवान फिर चलने से हार नहीं मानता। ---
2. दूसरा चरण है : चलते रहो। जब चल पड़े हो तो फिर रुको नहीं, चलते रहो, क्योंकि चलते रहोगे तो जीवन से ओतप्रोत रहोगे.कभी-भी मत्य का आभास तक नहीं होगा। जीवन्तता जीवन की थाती बन जाएगी। 'चलते रहो' की वृत्ति में खरगोश की तरह भाग तो जाओ, पर राह में यह गुमान लेकर सो जाओ कि मेरी तेज चाल के सामने मंजिल पर पहुंच जाना कौनसी बड़ी बात है? यों चाल तो तेज बना ली, पर सो गए और मंजिल गुमा दी। ऐसी खरगोश की चाल नहीं चाहिए। कछुए की चाल ही इससे बेहतर होती है। कछुआ धीमे-धीमे भले ही चलता है, लेकिन कहीं रुकता नहीं। राह में सो जाने का तो सवाल ही नहीं। धीमे-धीमे चलते हुए भी वह निश्चित समय में मंजिल पर पहुंच कर ही दम लेता है। इस सफलता का रहस्य जीवन के इस मूलमंत्र के दूसरे चरण में है कि चलते रहो, चलते रहो जब तक कि मंजिल पर न पहुंच जाओ। एक-सा उत्साह रहे, एक-सी उमंग रहे और एक-सी चाल रहे। गत्यावरोध न हो और गत्यात्मकता बनी रहे-यह सबसे बड़ी बात है।
3. तीसरा चरण : साथ न हो तो अकेले ही चलो, पर चलो अवश्य। चलना जिन्दगी है इसलिए किसी भी परिस्थिति में जिन्दगी से विलग मत होओ। समूह छोटा हो या बड़ा-साथ-साथ चलने में आसानी महसूस होती है और लगातार चलते भी रह सकते हैं, लेकिन किसी का साथ न हो और
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