________________
सुचरित्रम्
कराया गया। नई बसाहट की साज-सज्जा दर्शनीय बन गई। तब राजा भी बहुत प्रसन्न रहने लगाउसका मन स्वस्थ हआ तो तन ने भी स्वास्थ्य पकडा और सबसे ऊपर उसका चरित्र बल जाग उठा कि वह कुछ भी करने को तत्पर था पूरी शूरवीरता के साथ। वह पूरे वन प्रदेश और सुन्दर नगरबस्तियों को निहारता तो उसका चित्त पुलकित हो उठता।
पांच वर्ष की अवधि पूरी हुई तो एक नया ही वातावरण सामने आया। जहां पहले उत्सव के धूमधाम में भी राजा-रानी रोते बिलखते हुए राजधानी से विदा लेते थे, क्योंकि वहां मौत से मिलने के लिए जाना होता था। लेकिन इस बार बात एकदम पलट गई थी। अवधि समाप्त होने पर राजा-रानी जब अपने ही द्वारा निर्मित नए साम्राज्य में पहुंचे तो वहां बसी जनता ने उनका भाव-भीना स्वागत किया। तब पुराने राज्य की जनता भी वहां पहुंची और राजा से निवेदन किया कि वह उन्हें अब भी अपना राजा मानती है सो वहां का शासन भी वे ही सम्भाले रहें।
सच यह है कि यदि कठिनतम परिस्थितियों में भी मनुष्य का चरित्र बल जाग उठे तो वह उनका सामना करते हुए ऐसी नई परिस्थितियों का निर्माण कर सकता है, जिनके बीच न केवल उसका वर्तमान और भविष्य दोनों संवर सकते हैं, बल्कि वह अपने चरित्र बल के विस्तृत होते प्रभाव से समाज, राष्ट्र और विश्व तक को चरित्र निर्माण की दिशा में मोड़ सकता है। अभी-अभी पिछली शताब्दी के पूर्वार्ध में ही भारतवासियों ने देखा है कि किस प्रकार अकेले एक गांधी ने अपने चरित्र बल से सभी देशवासियों को एक व्यक्ति के रूप में खड़ा कर सशक्त बना दिया कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा और उसे स्वाधीनता देनी पड़ी। चरित्र बल का प्रभाव अपार और असीम होता है। कैसे जागेगा चरित्र बल और कैसा होता है शुभंकर परिवर्तन? :
चरित्र बल जागता है चरित्र के निर्माण और विकास से। पहले चरित्रनिष्ठा निर्मित होती है और इस निष्ठा से अन्तर में जिस बल की प्रतीति होती है उसे ही चरित्र बल कहा जाता है। अशुभताओं को मिटाने तथा शुभताओं को संवारने का कार्य सरल नहीं होता है। चाहे व्यक्ति को यह कार्य करना हो अपने स्वयं के चरित्र का निर्माण करने के लिए अथवा समूहों के द्वारा स्थापित विभिन्न व्यवस्थाओं में चारित्रिक गुणों का संचार करने के लिए-यह सब एक विशिष्ट बल के प्रयोग से ही संभव हो सकता है तथा इसी विशिष्ट बल का नाम है चरित्र बल। चरित्र द्वारा प्राप्त बल असाधारण होता है तथा इस बल को विश्व की कोई भी शक्ति अवरुद्ध नहीं कर सकती है। ___ चरित्र निर्माण अभियान के सहभागियों को इस सत्य को भलीभांति हृदयंगम कर लेना चाहिए। चरित्र निर्माण एवं विकास का मूल उद्देश्य ही यह है कि उससे चरित्र के प्रति निष्ठा और उससे उपजा बल प्राप्त हो। यह बल ही सब कुछ करने में समर्थ होता है। इस चरित्र बल से ही प्रत्येक युग में घूमता है शुभंकर परिवर्तन का चक्र और इस युग में भी चरित्र बल ही घुमा सकेगा शुभंकर परिवर्तन का चक्र, जिसकी आज महती आवश्यकता है। ___ 'शुभंकर' शब्द से ही स्पष्ट है कि कोई भी या कैसा भी परिवर्तन नहीं चाहिए, वही परिवर्तन चाहिए जो शुभंकर हो अर्थात् सबका सभी प्रकार से शुभ करने वाला हो। शुभ में सत्य, अहिंसा,
522