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________________ चरित्रबल से ही घूमेगा शभंकर परिवर्तन का चक्र समन्वय, सहयोग, संवेदना, सौहार्द्र, समृद्धि, सुख, शांति आदि सब कुछ हितावह सम्मिलित होता है। शुभ के लिए ही तो चरित्र की आवश्यकता है, फिर वह चाहे स्वयं के शुभ के लिए हो या समूह, समाज, राष्ट्र और विश्व के शुभ के लिए हो। अहिंसक जीवन प्रणाली को इसी शुभ का कारक माना जाता है तो अहिंसा की पीठ पर सत्य का वरण अनिवार्य हो जाता है। सच्चा साधक जानता है कि सत्य अनन्त है, किन्तु जन साधारण के लिए उसका सत्य उसके आग्रह में निहित होता है और सत्याग्रह का यही रहस्य है। स्थिति में गति सत्य के आग्रह से ही प्राप्त होती है। सत्य न हो तो अहिंसा को भी क्रियाशील नहीं किया जा सकता है। कर्म का उदगम सत्याग्रह से ही होता है तथा उसी से गति और वेग मिलता है। अहिंसा के योग से जो होता है, वह यह कि उस कर्म से बंधन पैदा नहीं होता और उस गति से स्थिति में भंग नहीं आता। परन्तु यह स्पष्ट रहना चाहिए कि अहिंसा जीवन की अस्थिरता को दूर करती है और सत्याग्रह जीवन में क्षमता का विकास करता है। वह मानो, सिक्के का सामने का पहलू है जिसके बिना अहिंसा मूल्यहीन हो जाती है। अहिंसा मानो, सत्य की पीठ है, जिस पर सत्य को सदा सक्षम बने रहना चाहिए। - सत्य के साथ जो आग्रह का संयोग है, वह सत्य के लिए संघर्ष का संकेत देता है और यह सही है। सत्याग्रह ही कर्म युद्ध को धर्म युद्ध का रूप देता है, क्योंकि धर्म युद्ध में धर्म की मर्यादाओं की रक्षा प्राथमिक बन जाती है और बाकी सब दूसरे नम्बर पर। तो कहने का अभिप्राय यह है कि परिवर्तन लाने के लिए सदा धर्म युद्ध करना पड़ता है। यही कारण है कि परिवर्तन आसान नहीं होता। एक व्यवस्था के अन्तर्गत उसके विकृत हो जाने के बावजूद भी जन-मन में एक स्थगन ही जड़ता पैदा हो जाती है। यही जड़ता उसे किसी भी परिवर्तन से भयभीत बनाती है चाहे वह परिवर्तन कितना ही शुभंकर क्यों न हो? इसके लिए अभियान के सहभागियों के मन-मानस में एक उत्साह जागृत रहना चाहिए जो जन-जन के स्थगन-भ्रम को दूर करते हुए उन्हें परिवर्तन के सत्य से परिचित बना सके। शुभंकर परिवर्तन के लिए होने वाले ऐसे धर्म युद्धों से ही संस्कारिता की धारणा मुखर होती है और संस्कृति सम्पन्न बनती है। चरित्र निर्माण अभियान में भी सत्य का आग्रह रहता है और जड़ता मिटाने का धर्म युद्ध भी होता है। __ वस्तुतः चरित्र निर्माण अभियान एक धर्म युद्ध है, जहां सत्, शुभ और शुद्ध को असत्, अशुभ एवं अशुद्ध के साथ संघर्ष करना पड़ता है। इसे जीतता है चरित्रशील व्यक्ति अपने चरित्र को विकसित बनाकर। उसकी जीवनशैली होती है अहिंसा पर आधारित, तो लक्ष्य होता है सत्य के साथ साक्षात्कार का। सत्य धर्म है और अहिंसा है उस धर्म को प्राप्त करने की साधिका और ये ही हैं चरित्र निर्माण के मूलाधार भी तथा ज्योतिस्तंभ भी। चरित्र बल पथ निर्माण भी करता है तो पथदर्शन भी ताकि चरित्रशील अपने साध्य को निश्चित रूप से प्राप्त कर ही ले। धर्म को भेदभाव विहीन अखंड मानें और उसे जीवन से जोड़ें : चरित्र निर्माण अभियान के सहभागियों को एक और सैद्धान्तिक बात भी भली भांति समझ लेनी चाहिए। कुछ समय से कई बुद्धिजीवियों द्वारा यह पूछा जाता रहा है कि 'जैन' हिन्दुत्व के अन्तर्गत है या नहीं? हालांकि यह विषय विवादास्पद बनता जा रहा है या बनाया जा रहा है। मूल बात यह है कि 523
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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