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सुचरित्रम्
अभियान को पूर्ण सफल बनाने के महद्कार्य में हमारी क्षमताएं बढ़ें, हमारी उपयोगिता बढें, हमारी कार्य पद्धतियां विकसित हों-इसके लिए हमें किसी के अवदानों की भिक्षा नहीं मांगनी है, हमें स्वतः से ही ऐसी परिस्थिति पैदा करनी होगी. एक-सा वातावरण और ऐसा देश. भाव निर्मित करने होंगे कि चरित्र निर्माण का उद्देश्य पाने के लिए जन-जन की तत्परता उग्र बने और हम सबको साथ में लेकर विकास की दिशा में निरन्तर आगे से आगे बढ़ते रहें-सदैव सबके लिए
उपयोगी बने रहें। 14. केवल प्रवृत्तिपरक धर्म और कर्त्तव्य की साधना हमारे अभियान के दायरे को विस्तृत बना
सकती है, परन्तु उतने मात्र से केन्द्र मजबूत नहीं हो सकता। साथ ही निवृत्तिपरक धर्म की साधना केन्द्र को मजबूत बना सकती है परन्तु उससे भी परिधि को सुदृढ़ एवं परिष्कृत नहीं बनाया जा सकता। इसलिए जीवन और धर्म में एक श्रेष्ठ कार्यशील संतुलन पैदा करना होगा, जो केन्द्र को मजबत बनाएगा तो उससे उन कठिन परिस्थितियों का सफलतापर्वक सामना भी किया जा सकेगा, जो अभियान के दौरान तरह-तरह की शक्लों में सामने उपस्थित हो सकती हैं। यह संतुलन ही हमारे व्यक्तित्व को सर्वतोमुखी बना सकेगा।
आत्मानुभूति का अभिप्राय स्पष्ट होना चाहिए कि माननीय विचार मन-मस्तिष्क में जम जाएं और उनके स्मरण से शिथिल होती इच्छाशक्ति सक्रिय हो जाए तथा कार्य-क्षमता निरुत्साह के घेरों से निकल कर अपना जौहर दिखाने लगे। अपने आपको स्वयं देखें-देखते रहें और दृढ़ता के सूत्रों को जोड़ते रहें: - अपने आपको स्वयं देखने के अर्थात् दृष्टा बनने के अनेकानेक लाभ हैं। किसी भी वस्तु को देखने और देखते रहने से ही उस वस्तु के मूल तथा परिवर्तनशील स्वरूपों की सही समीक्षा की जा सकती है। सही समीक्षा के आधार पर लिया जाने वाला सही सुधार या परिवर्तन का चरण ही निश्चित सफलता प्राप्त कर सकता है। सही समीक्षा, सही कार्य और सही मानसिकता रहे तो उसका परिणाम भी सही ही रहेगा। यही पद्धति जब हम अपने ही ऊपर लागू करें कि अपने आपको स्वयं देखें-देखते रहें तो निश्चित मानिए कि जो कार्य हम करेंगे वह अवश्य फलदायी होगा। चरित्र निर्माण अभियान के संदर्भ में तो प्रत्येक सहभागी के लिए यह कार्य पद्धति अनिवार्य-सी माननी चाहिए। इसके द्वारा यदि हम सदा सर्वत्र पूरी तरह सन्नद्ध रहते हैं तो हम निरन्तर दृढ़ता के सूत्रों को आपस में जोड़ते रह सकेंगे और बढ़ती हुई दृढ़ता से उत्साहित होते हुए अथक रूप से गति करते रहेंगे।
इस उद्देश्य के परिप्रेक्ष्य में यहां हम कुछ ऐसे सिद्धान्तों की चर्चा कर रहे हैं, जिनका सुप्रभाव अभियान के सहभागियों के स्वयं के जीवन, उनकी कार्य क्षमता एवं पद्धति पर पड़े बिना नहीं रहेगा।
1.क्षण को जानिए : महावीर का उपदेश है कि क्षण को जानिए और जो क्षण को जान लेता है, वास्तव में वही पंडित है, वही ज्ञानी है (खण जाणई पंडिए)। क्यों जानें क्षण को? क्योकि क्षण ही वर्तमान है-जो क्षण बीत गया, वह अतीत हो गया तथा जो क्षण आने वाला है वह भावी है। इस कारण जो क्षण वर्तमान है, वही महत्त्वपूर्ण और वास्तव में वही जीवन है-जीवन निर्माता है। क्षण को जानने
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