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चरित्र गति हेतु ग्राह गुणसूत्र व प्रचार नेटवर्क
त्रिवेणी बहती रहे और हम उसमें अवगाहित बने रहें । यह एक ऐसी त्रिवेणी है जिसमें अवगाहित रहने वाला साधक सफल ही नहीं, अमर भी हो जाता है।
6. हमारे जीवन का क्या श्रृंगार है - यह अभियान के सहभागियों को चिन्तन करते रहना चाहिए। • अनुशासनपूर्वक मर्यादाओं का पालन करना यह श्रृंगार हम ही कर सकते हैं - हमें छोड़कर अन्य कोई पशु-पक्षी नहीं कर सकते। यह मानव की ही शक्यता होती है। हमें तो आनुषंगिक और वास्तविक रीति से अनुशासन पूर्वक मर्यादाओं का पालन करते हुए जीवन को श्रृंगारित करना है। 7. हमारी प्रगति का आधार क्या है? यह तो नहीं कि हम कितना खा सकते हैं या चल सकते हैं या बोल सकते हैं या ऐसे ही अन्य कार्य कर सकते हैं- प्रगति के मापदंड इन से अलग होते हैं। हमारी भीतरी या बाहरी समूची प्रगति का आधार तो हमारी चरित्रनिष्ठा ही हो सकती है जिसके द्वारा सरलता, सहजता, वास्तविकता आदि सद्गुणों की हम अपने स्वयं के आचरण से अन्य लोगों को प्रेरणा भी दे सकते हैं। हमारे जीवन की प्रगति का यही सच्चा मापदंड होता है।
8. हमारे आनन्द के द्वार क्या हो सकते हैं? चरित्र निर्माण से प्राप्त मृदुता, मैत्री, सहजता हमारे आनन्द के द्वार हो सकते हैं जो हमें चरित्र सम्पन्नता के आनन्द - भवन में प्रवेश कराएंगे।
9. चरित्र निर्माण की नींव ऐसी ठोस हो कि जो हमें यथार्थताओं के इन्द्रलोक में विचरण करना सिखावें तथा चरित्र विकास के पथ पर आगे बढ़ावे । कल्पनाओं का इन्द्रलोक बड़ा सुरम्य हो सकता है, लेकिन उससे प्राप्त कुछ भी नहीं होता । यथार्थताएं ही हमें अप्राप्त भी प्राप्त करवाती हैं तो अप्राप्य को भी प्राप्य बना देती हैं।
10. चरित्रशीलता के फुल्ल- प्रफुल्ल उद्यान में कोई भी चेहरा मुर्झाया हुआ न रहे। खिले हुए फूल की तरह हम सदा सर्वदा मुस्कुराते ही रहें, क्योंकि जैसे मुर्झाए हुए फूल को कोई नहीं चाहता, वैसे ही हम भी मुर्झाया चेहरा लेकर फिरते रहेंगे तो हमें कोई नहीं चाहेगा ।
11. जब हम विचारों को अभिव्यक्त करने लगते हैं तब हमें अपनी योग्यता की परीक्षा देनी होती है। विचाराभिव्यक्ति द्वारा वैचारिकता में प्रखरता आती है। उस समय हमारे भीतर में रहे हुए अनुभवों के निधान प्रकट होने लगते हैं। इसलिए चरित्र निर्माण अभियान के दौरान जन-समूह के बीच हमें अपने विचारों को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करने से नहीं कतराना चाहिए।
12. चरित्र निर्माण अभियान में हम हमारे जीवन प्रवाह की प्रत्येक लहर को सम्यक् मोड़ देते रहने के लिए तत्पर रहें और यही हमारा उद्देश्य बन जाए। बहुत बार हम उद्देश्य निर्धारित तो कर लेते हैं, पर उसके अनुकूल कर्मठता नहीं सध पाती है। हम कठोर से कठोर प्रयत्न करने से कतराने लगते हैं और आवश्यक कटिबद्धता नहीं बनती। परन्तु इस अभियान के लिए कर्मठता के कार्य करने के लिए हम संकल्पबद्ध हो जाए।
13. खतरों को झेलने वाला ही कामयाब होता है। जो खतरों को देख कर घबरा जाता है और कार्य क्षेत्र से भाग खड़ा होता है वह कहीं भी किसी विजयश्री को प्राप्त नहीं कर सकता है। विजयश्री उन्हीं को हस्तगत होती है जो बड़े से बड़े खतरे का मुकाबला करने का सामर्थ्य पैदा कर लेता है। इ
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