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चरित्र गति हेतु ग्राहगुणसूत्र व प्रचार नेटवर्क
का यही रहस्य है कि आप अपनी दृष्टि क्षण पर केन्द्रित कर लें और उसी की सार्थकता देने के लिए कटिबद्ध हो जाए-बस एक क्षण को जान लेने वाला पूरे समय पर विजय प्राप्त कर सकता है। पश्चिम के एक लोकप्रिय लेखक डेल कार्नेगी ने भी इसी बिन्दु पर बल देते हुए सूत्र-वाक्य ही कहा है-क्षण को पकड़ लो। उनके अनुसार क्षण को पकड़ लिया यानी कि उसका सदुपयोग कर लिया तो जीवन का सदुपयोग स्वतः ही सध जाएगा।
2.स्मृति को संवारिए : स्मृति के बिना विस्मृत हो जाती है सभी बातें और अति महत्त्व की बातें भी। यह उक्ति सभी जानते होंगे कि 'पाठ भूला क्यों, घोड़ा अड़ा क्यों और पान सड़ा क्यों'सबका एक ही उत्तर है कि 'फेरा नहीं' यानी कि स्मृति नहीं की, उलट-पुलट नहीं किया। पाठ पढ़ने के साथ अभ्यास करना होता है कि वह याद रहे। घोड़ा तब अड़ता है जब उसे लगातार फेरा नहीं जाता। पान भी सड़ जाता है जब उसे बार-बार उलटा-पुलटा नहीं जाता। हम जो भी संकल्प करें, जो भी प्रतिज्ञाएं लें तथा जो भी कार्य करने का निश्चय करें-उसके साथ स्मृति को संवार कर जोड लें जो आपको उसकी प्रतिक्षण याद दिलाती रहेगी और आपको कार्यरत बने रहने के लिए उत्साहित करती रहेगी। एक उदाहरण लें। हमने यह समझ लिया और धारणा बना ली कि चरित्र निर्माण तथा विकास के प्रभाव से हम सर्वत्र अहिंसक जीवनशैली का विकास कर सकते हैं तो इस धारणा को जब बार-बार स्मरण करते रहेंगे तो हम निष्क्रिय नहीं रह सकेंगे। ____3. सत्संस्कार ढालिए : हम अपने जीवन को सुधारें, चरित्रशीलता की दिशा में आगे पग बढ़ावें तथा आवश्यक परिवर्तनों को तेजी से लावें-यह वर्तमान के लिए जरूरी है, किन्तु यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहनी चाहिए, चरित्र निर्माण एवं विकास का कार्य सतत रूप से चलता रहना चाहिएइसके लिए नई पीढ़ी में भी सत्संस्कारों का आरोपण अनिवार्य है। आप अपने सदाचरण से सत्संस्कार ढालिए ताकि वे सत्संस्कार स्वतः ही आपकी सन्तति में ढलतें जावें।. ...
4.आत्मालोचना करना न भूलें : हमने क्या किया, क्या जो करना चाहिए था वह नहीं किया अथवा करणीय को हम भूल ही गए, इसकी जानकारी तभी हो सकती है जब हम प्रतिदिन आत्मालोचना का क्रम बनावें। प्रतिक्रमण क्या है? यही तो है कि जो किया और अच्छा नहीं किया उसका पश्चात्ताप करें तथा आगे से वैसा न करने का संकल्प ग्रहण करें। आत्मालोचना से आत्ममंथन होता है और आत्मविश्वास सुदृढ़ बनता है। आत्म-विश्वास ही तो वह अनूठी शक्ति का प्रदाता है जो कभी किसी भी परिस्थिति में निस्तेज नहीं होती। चरित्र निर्माण अभियान में सच कहें तो इसी शक्ति की सबके लिए महती आवश्यकता होती है। ____5. साराधक बनें : आकृति, प्रकृति, व्यवहार, विचार-इन सबको सह पाना जीवन की बड़ी कला है और इस कला की शिक्षा मिलती है सर्वाराधक होने में। सर्वाराधना क्या? सबकी आराधना अर्थात् सबको सहो, किसी को भी अपने विचार, वचन या व्यवहार से आहत मत करो। आज की सबसे बड़ी समस्या है-असहिष्णुता। कोई किसी को सहना नहीं चाहता। क्यों मैं ही सहूं-जैसे यह हठ बन गई है। एक विचार दूसरे विचार को, एक देश दूसरे देश को, एक समाज दूसरे समाज को, एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय को, यहां तक कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को सहन नहीं कर रहा है।
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